(आरएनएस)
उत्तराखंड उच्च न्यायालय के कड़े आदेशों के बावजूद, बाढ़वाला क्षेत्र में अवैध खनन का काला कारोबार धड़ल्ले से जारी है। खनन माफियाओं के हौसले इतने बुलंद हैं कि प्रशासन की नाक के नीचे भारी मशीनरी का इस्तेमाल कर मिट्टी और खनिजों की बेहिसाब लूट हो रही है।
पोर्कलैंड मशीनों की गड़गड़ाहट में गुम हो रही कानून की आवाज
स्थानीय रिपोर्टों के अनुसार, खनन माफिया पोर्कलैंड मशीनों का उपयोग कर भूमि को खोद रहे हैं और रैंप बना रहे हैं। यह गतिविधियां न केवल पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुंचा रही हैं, बल्कि प्रशासन की निष्क्रियता पर भी सवाल खड़े कर रही हैं।
‘रिवर बेड एंड मिनरल्स माइनिंग’ पर शक के घेरे में
सूत्रों का कहना है कि अवैध रूप से निकाले गए खनिजों को ‘रिवर बेड एंड मिनरल्स माइनिंग’ नामक कंपनी के वाहनों पर लादकर अन्यत्र स्थानांतरित किया जा रहा है। इस कंपनी पर संदेह गहराता जा रहा है कि यह अवैध खनन की साजिश के केंद्र में है।
सरकार और प्रशासन की चुप्पी पर उठ रहे सवाल
खनन माफियाओं की इस बेखौफ हरकत ने न केवल पर्यावरण को खतरे में डाल दिया है, बल्कि स्थानीय समाज और प्रशासनिक तंत्र की निष्क्रियता पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह घटना साबित करती है कि कानून का डर खनन माफियाओं के लिए केवल कागजों तक सीमित रह गया है।
अवैध खनन का दंश: पर्यावरण और समाज पर भारी
यह काला कारोबार सिर्फ प्राकृतिक संसाधनों का दोहन नहीं है, बल्कि स्थानीय निवासियों की आजीविका और सुरक्षा पर सीधा प्रहार है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह अवैध गतिविधि तुरंत नहीं रुकी, तो क्षेत्र में भू-स्खलन, जल संकट, और पर्यावरणीय असंतुलन जैसी समस्याएं विकराल रूप ले सकती हैं।
क्या सरकार जागेगी?
इस मुद्दे पर स्थानीय जनता ने प्रशासन से अविलंब कार्रवाई की मांग की है। अवैध खनन की रोकथाम के लिए सख्त कानूनों के साथ-साथ आधुनिक तकनीकों, जैसे ड्रोन सर्वेक्षण और जीपीएस ट्रैकिंग, का उपयोग अनिवार्य हो गया है।
बाढ़वाला में जारी यह अवैध खनन केवल एक क्षेत्रीय समस्या नहीं, बल्कि प्रशासनिक लापरवाही और पर्यावरणीय अपराध का एक भयानक उदाहरण है। अब देखना यह है कि क्या सरकार और प्रशासन इन खनन माफियाओं के खिलाफ सख्त कदम उठाते हैं या फिर यह काला खेल यूं ही चलता रहेगा।