अनेक अपराधी जेल से लोकसभा का चुनाव जीते हैं। उन्हें जीत का सर्टिफिकेट न मिले और वे शपथ ग्रहण नहीं करें, तो क्या उन्हें सांसद की मान्यता और वेतन आदि मिलेगा? इसका जवाब नहीं है। परीक्षाओं में धांधली रोकने के लिए केंद्र सरकार ने जिस कानून को आधी रात को लागू किया है, उसे इसी तरीके से समझने की जरूरत है। इसे चार माह पहले ही संसद के साथ राष्ट्रपति की स्वीकृति मिल गयी थी। नीट और अन्य कुछ परीक्षाओं में धांधली के हो रहे खुलासे और अनेक परीक्षाओं के रद्द होने से जब पानी नाक के ऊपर आ गया, तो सरकार ने नये कानून के ब्रह्मास्त्र का इस्तेमाल किया है।
मजेदार बात यह है कि इसकी धारा 17 के तहत कानून मंत्रालय ने अभी विस्तृत नियम नहीं बनाया है। उनके बगैर यह कानून बिना बारूद दिखावटी तोप जैसा है। इसे एक और तरीके से समझते हैं। डेटा सुरक्षा का कानून पारित होने के बावजूद नियम न बनने की वजह से ठंडे बस्ते में पड़ा है। नये कानून के साथ नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) में सुधार के लिए एक उच्च स्तरीय समिति गठित की गयी है, जिसे दो माह में रिपोर्ट देनी है। जिन्होंने श्रीलाल शुक्ल का ‘राग दरबारी’ पढ़ा है, उन्हें पता है कि भारत में मामले को टालने के लिए समिति बनाना परंपरागत और कारगर हथियार है।
कानूनों में पहले ही नकल, भ्रष्टाचार, फर्जीवाड़ा और संगठित अपराध रोकने के लिए प्रावधान हैं, जिनके तहत अभी पुलिस मामले दर्ज कर रही है। नये कानून के तहत परीक्षा आयोजित करने वाली एजेंसी या सर्विस प्रोवाइडर पर एक करोड़ रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। सर्विस प्रोवाइडर संगठित अपराध करे, तो न्यूनतम पांच और अधिकतम दस साल की जेल हो सकती है। परीक्षा केंद्र में गड़बड़ी करने पर चार साल के लिए केंद्र को निलंबित किया जा सकता है।
संबंधित अधिकारियों को लोक सेवक का दर्जा मिलने की वजह से उनके खिलाफ आपराधिक साजिश के साथ भ्रष्टाचार का मामला भी चल सकता है। बंबई हाइकोर्ट के नये फैसले के अनुसार, 2015 के कानून से काले धन के पुराने मामलों में कार्रवाई करना संविधान के अनुच्छेद 20 का उल्लंघन है। इसलिए नये कानून से पुराने अपराधों की जांच कैसे होगी, इस बारे में भी कानूनी विवाद की स्थिति है। इस कानून के दायरे में यूपीएससी, एसएससी, रेलवे, बैंकिंग और एनटीए द्वारा आयोजित परीक्षाएं आयेंगी। इसलिए लोक सेवा आयोग और बोर्ड आदि की नौकरियों और परीक्षाओं में धांधली को रोकने के लिए राज्यों को नये मॉडल कानून के अनुसार नये सिरे से कानून बनाने होंगे। कई राज्यों में ऐसे कानून पहले से हैं। उड़ीसा में 1988, आंध्र प्रदेश में 1997, उत्तर प्रदेश में 1998, झारखंड में 2001, छत्तीसगढ़ में 2008, राजस्थान में 2022, गुजरात और उत्तराखंड में 2023 में नकल और धांधली रोकने के लिए कानून बनाये गये हैं।
उत्तर प्रदेश में नकल रोकने के लिए एसटीएफ ने कमान संभाल ली है। परीक्षा केंद्रों में सीसीटीवी, कैमरा, वॉइस रिकॉर्डर, राउटर, वेब टेलीकास्ट आदि को दुरुस्त रखना होगा। नयी नीति के अनुसार निजी कंपनियों और परीक्षा केंद्रों के लिए एसटीएफ की मंजूरी जैसे सख्त प्रावधान हैं। इसमें नकल और एग्जाम माफिया गड्डमड्ड कर परीक्षार्थियों पर नियमों का बोझ डालने से चीजें बिगड़ सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में आठ जुलाई को सुनवाई होगी, पर पिछली बार जजों ने साफ कर दिया था कि परीक्षाओं में 0। 001 फीसदी गड़बड़ी भी बर्दाश्त नहीं होगी। अगर भ्रष्ट तरीके से परीक्षा पास किये लोग डॉक्टरी के पेशे में आ गये, तो फिर समाज की कितनी दुर्दशा होगी। शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान अब किस्तों में गलतियों और गड़बड़ी को स्वीकार कर रहे हैं। साल 2004 में 13 और 2015 में 44 परीक्षार्थियों को पर्चा लीक होने पर एआईपीएमटी ने परीक्षा को रद्द कर दिया था। लेकिन नीट में बड़ी धांधली के सबूत आने के बावजूद परीक्षा रद्द करने से सरकार इंकार कर रही है।
बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने राजद नेता तेजस्वी यादव को कटघरे में खड़ा करते हुए पेपर लीक को तो मान ही लिया है। डार्क नेट में पर्चा मिलने पर सरकार ने नेट की परीक्षा रद्द कर दी। अब नेट की धांधली के तार नीट से भी जुड़े मिल रहे हैं, तो नीट परीक्षा को रद्द कर नयी परीक्षा कराने की मांग हो रही है। नालंदा विश्वविद्यालय के पुनर्निर्माण के साथ एनटीए जैसे आधुनिक संस्थानों पर युवाओं का भरोसा बरकरार रखने पर ही विकसित भारत का निर्माण हो सकेगा। नीट की पूरी परीक्षा रद्द करने की बजाय स्थानीय स्तर पर दोषियों को चिह्नित और दंडित करने के लिए इन चार उपायों पर अमल करने की जरूरत है। पहले आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के इस्तेमाल से सभी संदिग्ध छात्रों, अभिभावकों, कोचिंग संस्थानों, परीक्षा केंद्रों, नकल माफिया और एनटीए अधिकारियों की पहचान एक दिन में पूरी हो। अगले दिन सीबीआई और ईडी उनके बैंक खातों की जांच और उनका नार्को टेस्ट कराये। जैसे छोटे-छोटे मामलों में मीडिया ट्रायल होता है, वैसे ही नीट मामले में पारदर्शिता के साथ कारवाई का सीधा प्रसारण और रिपोर्टिंग हो। तीसरे चरण में दागी लोगों की संपत्ति की कुर्की हो। नये कानून के प्रावधानों के अनुसार छात्रों को हुए आर्थिक नुकसान की भरपाई नकल माफिया और लापरवाह अधिकारियों के खातों और संपत्ति से होनी चाहिए।
नीट मामले में यह बयान कि मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित होने की वजह से सरकार अदालत के आदेश का पालन करेगी, हास्यास्पद और शर्मनाक है। इस फॉर्मूले के अनुसार तो अदालत में लंबित सभी मामलों से सरकार को पल्ला झाड़ लेना चाहिए। जिन अपराधियों का संगठित तंत्र होता है और उन्हें नेताओं का प्रश्रय मिलता है, उनके सामने कानून के लंबे हाथ बहुत छोटे पड़ जाते हैं। कानून कितनी तेजी से काम कर सकता है, इसकी एक मिसाल आंध्र प्रदेश के मामले में देखी जा सकती है। पूर्व मुख्यमंत्री जगन रेड्डी की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस के ऑफिस को भोर में चंद्रबाबू नायडू सरकार ने बुलडोजर से ढाह दिया। गौरतलब है कि आंध्र प्रदेश एनडीए सरकार में भाजपा भी भागीदार है। जिस तरह से नेताओं के व्यक्तिगत हितों के मामलों में कानून बिजली की रफ्तार से काम करता है, वैसी ही इच्छाशक्ति से नीट के गुनहगारों को कुचलने की जरूरत है। उसके बाद ही नये कानून सफल होंगे और हमारी परीक्षा प्रणाली दुरुस्त होगी।
(ये लेखक के निजी विचार हैं। )
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