दर्द दूर करने में सिंकाई बेहद कारगर होती है. सिंकाई दो तरह की होती है. पहली गर्म और दूसरी ठंडी सिंकाई. दोनों सिंकाई का काम अलग-अलग होता है. कई बार गर्दन में दर्द होने के बाद समझ नहीं आता कि गर्म सिंकाई करें या ठंडी. एक्सपर्ट्स का मानना है कि इसे लेकर कोई प्रमाण नहीं है कि किसी भी दर्द के लिए हीट थेरेपी बेहतर है या कोल्ड थेरेपी. हालांकि, नई चोट और सूजन पर ठंडी सिंकाई की सलाह दी जाती है. जबकि सूजन कम होने, कठोरता और तनाव को कम करने के लिए गर्म सिंकाई की जाती है.
गर्दन में दर्द के लिए कौन सी थेरेपी बेहतर
एक रिसर्च के मुताबिक, गर्दन में दर्द के लिए हॉट और कोल्ड दोनों सिंकाई बेहतर होती है. आमतौर पर एक्यूट नेक इंजरी, गर्दन में मांसपेशियों पर दबाव, सूजन, एक्सरसाइज के बाद मांसपेशियों की राहत के लिए आईस यानी कोल्ड थेरेपी की सलाह दी जाती है. वहीं, दूसरी तरफ हॉट थेरेपी यानी गर्म सिंकाई से सूजन कम हो जाने के बाद पुरानी या बार-बार गर्दन में अकडऩ, स्ट्रेचिंग या एक्सरसाइज से पहले मांसपेशियों के वॉर्मअप की सलाह दी जाती है.
हॉट थेरेपी और कोल्ड थेरेपी पहले कौन
कुछ रिसर्च में बताया गया है कि एक्सरसाइज के 24 घंटे में ठंडी सिंकाई करना दर्द को कम कर सकता है. हालांकि, गर्दन में दर्द की एक नहीं कई वजहें हो सकती हैं. इसलिए दोनों में किसी एक को बेहतर कहना सही नहीं होगा. बेहतर परिणामों के लिए बारी-बारी दोनों को करना चाहिए. जिससे गर्दन को ज्यादा आराम मिले, उसे चुनना चाहिए. हालांकि, किसी भी सिंकाई को 20 मिनट से ज्यादा नहीं होना चाहिए.
किस काम आती है ठंडी सिंकाई
ठंडी सिकाई में रक्त वाहिकाओं को संकुचित करके, परिसंचरण को धीमा करने और सूजन कम करके नई चोट से होने वाले अचानक दर्द से राहत मिलती है. कोल्ड थेरेपी को मांसपेशियों की ऐंठन और तेज दर्द में बेहतर माना जाता है. गर्दन में दर्द या खिंचाव के कारण बेड रेस्ट पर हैं, इसके लिए एक्सपर्ट्स कोल्ड थेरेपी को बेहतर बताते हैं.
हॉट थेरेपी किस लिए बेहतर
गर्म सिंकाई परिसंचरण में सुधार कर पुरानी कठोरता और तंग मांसपेशियों की परेशानी से राहत देने में मदद करता है. इसकी मदद से ज्यादा पोषक तत्व और ऑक्सीजन पहुंचाया जा सकता है. इससे दर्द से निजात मिल सकता है. इस थेरेपी से मांसपेशियों को ढीला करने और ऊतकों को ज्यादा लचीला बनाने में भी मदद करती है. रोजमर्रा का काम करने वालों को एक्सपर्ट्स गर्म सिंकाई की सलाह देते हैं.
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