ऋषिकेश(आरएनएस)। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने हावड़ा, कोलकात्ता, पश्चिम बंगाल की धरती पर देव दीपावली महा महोत्सव मनाया। वहां हजारों की संख्या में उपस्थित श्रद्धालुओं को सम्बोधित किया तथा हजारों की संख्या में दीप प्रज्वलित दीपदान महा महोत्सव मनाया। परमार्थ निकेतन में साध्वी भगवती सरस्वती जी के पावन सान्निध्य में परमार्थ गुरूकुल के ऋषिकुमारों और विश्व के विभिन्न देशों से आये नेत्र चिकित्सकों ने दीप प्रज्वलित कर देव दीपावली का पर्व मनाया। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि देव दीपावली के दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था। त्रिपुरासुर ने अपने आतंक से मनुष्यों, ऋषि मुनियों को त्रस्त कर रखा था। भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का अंत किया था इसका आभार प्रकट करने हेतु सभी देवी-देवता ने भगवान शिव का अनेक दीपक जलाकर अभिनन्दन किया तब से प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास की पूर्णिमा को देव दीपावली मनाई जाती है। शास्त्रों में उल्लेख किया गया है कि इस दिन देवता पृथ्वी पर आकर माँ गंगा के जल में स्नान कर दीप दान करते हैं इसलिये आज गंगा जी के जल में स्नान करना तथा तटों पर दीप प्रज्वलित करने का दिव्य विधान है। स्वामी जी ने कहा कि माँ गंगा न केवल भारतीयों या हिंदुओं के लिए है, बल्कि वह सभी के लिए है। गंगा जी ने कभी किसी में भेद नहीं किया अब यह हम सब की जिम्मेदारी है कि गंगा जी को स्वच्छ रखें और उनके स्वतंत्र प्रवाह में बाधा न उत्पन्न करें। माँ गंगा हमें एकजुट करती है। हम सभी जातियों, धर्मों, रंगों और संस्कृतियों को मानने वाले उनकी पवित्र जल में स्नान करने हेतु आते हैं। अतः सभी मिलकर गंगा जी को प्रदूषण व प्लास्टिक मुक्त करने हेतु अपने टाइम, टैलेंट, टेक्नालॉजी और टेनेसिटी के साथ कार्य करें तो निश्चित रूप से परिवर्तन होगा।
स्वामी जी ने आज प्रकाशोत्सव के अवसर पर गुरू नानक देव जी के संदेशों को याद करते हुये कहा कि उन्होंने ’’एक नूर ते सब जग उपज्या, कौन भले कौन मंदे’’। उन्होंने सामजिक ढांचे को एकता के सूत्र में बाँधने के लिये तथा ईश्वर सबका परमात्मा हैं ,पिता हैं और हम सभी एक ही पिता की संतान है ऐसे अनेक दिव्य सूत्र दिये। वे एक दार्शनिक, योगी, गृहस्थ, धर्मसुधारक, समाजसुधारक, कवि और देशभक्त थे। ’’सतगुरू नानक प्रगटिया, मिटी धुंध जग चानण होआ, ज्यूँ कर सूरज निकलया, तारे छुपे अंधेर पलोआ।’’ आज उनके प्रकाशपर्व पर उनकी साधना, आराधना, सद्भाव और राष्ट्र भक्ति को नमन।
सच्चा सौदा वाली कथा हो या अन्य अनेकों कथायें हो या सामान तोलते-तोलते जब संख्या में (13) तेरा-तेरा आता तो उनके हृदय में यह भाव उत्पन्न होता कि जो कुछ है वह सब तेरा है। उनकी सबसे पहली शिक्षा थी कि कैसे हृदय की गांठ खुलें, इससे जात-पात, भेदभाव, ऊँच-नीच के भाव समाप्त हो जाते हैं। ‘‘कहो नानक जिन हुकम पछाता, प्रभु साहब का तिन भेद जाता’’ अर्थात प्रभु का भेद प्राप्त हो जाने के बाद सारे भेद मिट जाते है। ’’सब घट ब्रह्म निवासा’’, सब बराबर हैं, कोई छोटा नहीं, कोई बड़ा नहीं, बस एक ही भाव रह जाता है सब से प्रेम करो, सब की सेवा करो, हृदय को पवित्र रखो और सदा ईश्वर का स्मरण करते रहो। जीवन श्रेष्ठ बनाये यही संदेश लेकर सद्गुरू नानक जी सभी जगह गये और सभी को नाम दान दिया।
साथ ही उन्होंने नाम जपो, कीरत करो और वंड चखो अर्थात प्रभु का नाम बाहर, भीतर हमेशा चलता रहें, कथायें हो, कीर्तन हो, नाम स्मरण हो ये सब बातें मन को शुद्ध करने के लिये है ताकि मन का मैल मिटे तथा जीवन में सत्य, प्रेम और करूणा का विकास हो। कीरत करो अर्थात जीवन में पुरूषार्थ करो और वंड चखो अर्थात मिलबांट कर खाओ, यह सब मूल्यवान गुण है, यह जब जीवन में आते हैं तभी जीवन सार्थक है
सेठ बंशीधर जालान स्मृति मंदिर, बांधाघाट, हावड़ा में सुधीर जालान जी, राधेश्याम गोयनका जी, सुशील गोयनका जी के मार्गदर्शन में इस दिव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया। स्वामी जी ने आयोजक परिवार के सदस्यों को रूद्राक्ष का दिव्य पौधा भेंट किया।
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