अफगान तकलीफ में हैं। उनका बुरा वक्त चल रहा है।ऐसे मैं देश के भीतर की अनिश्चितता और अराजकता के चलते पाकिस्तान में रह रहे करीब 17 लाख अफग़़ानों की और मुश्किल है। उन्हे पाकिस्तान ने अफगानिस्तान लौटने को कहा है। अगर वे ऐसा नहीं करते गै तो उन्हें पाकिस्तानी कानून में कार्यवाही का सामना करना पड़ेगा।सो मंगलवार को पाकिस्तान में दस्तावेजों के बिना रह रहे करीब दस हजार अफगानियों को बसों और ट्रकों में ठूंसकर सीमा की ओर भेजा गया। अक्टूबर में करीब एक लाख अफगानी पहले ही जा चुके हैं।
पाकिस्तान के आदेश मेंएक नवंबर तक की मोहलत दी गई थी। मकान मालिक अफगानी किरायेदारों से मकान खाली करवा रहे हैं क्योंकि उन्हें भय है कि ऐसा न करने पर उन्हें भारी जुर्माना देना पड़ेगा। बिना दस्तावेज वाले अफग़़ान कर्मचारियों को नौकरी से हटाया जा रहा है। पुलिस उन बस्तियों में छापेमारी कर रही है जहां बड़ी संख्या में अफगानी रहते हैं। जिनके पास कोई दस्तावेज नहीं हैं, उन्हें गिरफ्तार किया जा रहा है। मानवाधिकार संगठनों और प्रवासियों ने पाकिस्तान के इन कदमों की निंदा की है। उन्हें डर है कि कुछ अफगानों को अतीत में तालिबान के विरोधियों से रिश्ते रखने के कारण अफगानिस्तान में दंडित किया जा सकता है।
पाकिस्तान में करीब 37 लाख अफगानी शरणार्थी रह रहे हैं, जिनमें से लगभग 7 लाख, अगस्त 2021 में अफगानिस्तान पर तालिबानी कब्जा होने के बाद से वहां से आए हैं। इनमें से 17 लाख के पास कोई दस्तावेज नहीं हैं। लेकिन टाईम पत्रिका के अनुसार बहुत से ऐसे अफगानियों को भी कानूनी कार्यवाही का सामना करना पड़ रहा है जिनके पास वैध दस्तावेज हैं। तालिबान के रक्षा मंत्री मोहम्मद याकूब ने 5 अक्टूबर को कहा, ‘‘पाकिस्तान का अफगानियों को निष्कासित करने का फैसला अन्यायपूर्ण एवं अमानवीय है, और हम इसकी निंदा करते हैं”।
लेकिन पाकिस्तान को इस सबकी कोई परवाह नहीं है। उसे न तो अपनी छवि की चिंता है, न अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की नाराजगी की, न आईएमएफ के ऋण की, न तालिबान के कब्जे वाले अफगानिस्तान से रिश्ते और तनावपूर्ण होने की। सरकार ने देश भर में कई निर्वासन केन्द्र स्थापित कर दिए हैं जिससे इस बात का संकेत मिलता है कि सरकार अफगानियों को पकडक़र वापिस भेजने के लिए कितनी गंभीर है। इस बीच पाकिस्तान की जनता भी कार्यवाहक ‘कठपुतली नागरिक सरकार के इस निर्णय की सराहना और समर्थन कर रही है। कराची में पाकिस्तानी अफगानियों से बहुत कम दाम पर संपत्तियां खरीद रहे हैं।
तो आखिर जनरल आसिम मुनीर और उनके सहयोगियों की सेना यह क्यों कर रही है? जनता की लोकप्रियता दुबारा हासिल करने के लिए। औपचारिक तौर पर इसका कारण तहरीक-ए-तालिबान-पाकिस्तान (टीटीपी), जिसे पाकिस्तानी तालिबान भी कहा जाता है, की बढ़ती ताकत पर अंकुश लगाना बताया जा रहा है। यह सरकार के तख्तापलट का लक्ष्य लेकर चल रहे इस्लामिक संगठनों का एक समूह है। इनका संबंध अल-कायदा से है और इनकी निष्ठा अफगान तालिबान के प्रति है। तालिबान भले ही इसका खंडन करता है परन्तु यह भी सही है कि इन लड़ाकों को सुरक्षित शरणस्थल तालिबान की उपलब्ध करवा रहा है। तालिबान के अफगानिस्तान की सत्ता पर दुबारा काबिज होने के बाद से पाकिस्तान में टीटीपी की हिंसक गतिविधियों में बहुत बढ़ोत्तरी हुई है, विशेषकर खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान प्रांतों में, जिनकी सीमा अफगानिस्तान से मिलती है। पिछले माह एक ही दिन में आत्मघाती हमलावरों द्वारा मस्जिदों पर किए गए दो अलग-अलग हमलों में 60 लोगों की मौत हुई। सरकार का कहना है कि टीटीपी में अफगानियों की संख्या बढ़ती जा रही है। उसका दावा है कि इस वर्ष हुए दो दर्जन से अधिक आत्मघाती बम विस्फोटों में से आधे से अधिक अफगानियों द्वारा किए गए थे।
लेकिन अफगानियों को हटा देने मात्र से टीटीपी खत्म नहीं होगा, ना ही आम जनता में सेना दुबारा लोकप्रियता हासिल कर पाएगी, यह बात जनरल मुनीर और सहयोगियों की समझ में नहीं आ रही है। उनका यह अनुमान पूरी तरह गलत है कि सारे अफगानियों को वापिस अफगानिस्तान भेजने से तालिबान सरकार पर दबाव पड़ेगा, उन्हें अक्ल आएगी और वे पाकिस्तान के साथ अधिक सहयोगपूर्ण रवैया अपनाएंगे। आखिकार तालिबान पाकिस्तान की वित्तीय सहायता से ही बना था!
जनरल मुनीर और उनके मातहतों का यह उम्मीद कि तालिबान पर नियंत्रण कर पाकिस्तान बड़ी शक्तियों, मुख्यत: अमरीका से सौदेबाजी करने की बेहतर स्थिति में होगा और इससे उसके घोर शत्रु भारत का अफगानिस्तान में प्रभाव कम होगा, हास्यास्पद है और पूरी तरह गलत साबित हुई है क्योंकि सत्ता पर दुबारा काबिज होने के बाद तालिबान ने पाकिस्तान के प्रति जरा सी भी कृतज्ञता या सम्मान प्रदर्शित नहीं किया है। हाल में प्रधानमंत्री पद से हटाए गए इमरान खान के समर्थन में पाकिस्तान में हुए प्रदर्शनों के बाद तालिबान के विदेश मंत्रालय ने बिना लागलपेट के कहा कि पाकिस्तान में राजनैतिक स्थितरता बनी रहनी चाहिए क्योंकि इससे पाकिस्तान और पूरे क्षेत्र को लाभ होगा। और अब निर्वासन की रणनीति अपनाकर पाकिस्तान ने तालिबान को नाराज कर दिया है। जनरल मुनीर को उम्मीद है कि 17 लाख अतिरिक्त लोगों का बोझ डालकर वे तालिबान को झुकने के लिए मजबूर कर पाएंगे और उसे टीटीपी को संयम बरतने की सलाह देने के लिए प्रेरित करेंगे। लेकिन इसका नतीजा होगा अधिक हिंसा और अधिक क्षेत्रीय अस्थिरता।
जहां तक पाकिस्तानी जनता का सवाल है, अर्थव्यवस्था जर्जर स्थिति में है। पाकिस्तान स्वयं एक डूबता हुआ जहाज है। राजनीतिक हालात बुरे हैं, अभी भी इमरान खान के प्रति काफी जनसमर्थन है। देश अस्थिरता के कगार पर है, अफगानियों के निर्वासन से समस्या कम नहीं होगी, बल्कि बढ़ेगी। लेकिन उस दौर में जब सत्ता ही सब कुछ है, किसी को दूसरे की परवाह नहीं है, यही होने की उम्मीद की जा सकती है।
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