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उत्तराखंड में नदियों का अस्तित्व संकट में: मोहन चंद्र काण्डपाल

देहरादून। 27 जून। उत्तराखंड में नदियों का अस्तित्व संकट में 6000 से ज्यादा छोटी-बड़ी नदियां जिसमें से ज्यादातर या तो मर चुकी हैं या बरसाती हो गई हैं व सूख रही हैं वहीं आपदा अब उत्तराखंड की नियति बनती जा रही है।
मंगलवार को लैंसडाउन चौक स्थित एक होटल में आयोजित पत्रकार वार्ता में मोहन चंद्र कांडपाल ने कहा कि नदियों का अस्तित्व अब संकट में है। उन्होंने कहा कि नदियों में अवैध अतिक्रमण, एक्सट्रीम वेदर कंडीशन जलवायु परिवर्तन के नए संकेत साफ-साफ दिखाई पड़ रहे हैं। वहीं दून शहर के अंदर 23 से ज्यादा नदियां हैं। लेकिन कोई भी अब साफ नहीं रही हैं। ज्यादातर अब केवल बरसाती हो गई हैं, मल-मूत्र ढोने वाली हो गई हैं। अल्मोड़ा के रस का नदी पर काम करने वाले ‘पर्यावरण वाले मास्साब’ के नाम से मशहूर मोहनचन्द्र कांडपाल, उत्तरांचल राज्य के सुर्खेत गांव के इंटर कालेज में पढ़ाते हैं। लेकिन अब मोहन मास्साब अपने गांव ‘कांडे’ लौट आए।क्योंकि एक दिन उन्होंने आंकाशवाणी पर एक रेडियो नाटक सुना, जिसमें उनके जैसे पढ़े-लिखे युवकों से कहा जा रहा था। शहरों में मोटी तनख्वाह की नौकरी करने, और अपने स्वार्थ में डूबे रहने से कहीं अच्छा है कि युवा लोग, दीन-हीन गांवों में जाकर वहां जनशिक्षा और पर्यावरण सुधार जैसे मुद्दों से जुड़कर काम करें। उन्होंने अपने विद्यार्थियों को लेकर ‘पर्यावरण चेतना मंच’ बनाया। गोष्ठियों, रैलियों और प्रतियोगिताओं की मार्फत पास के गांवों के लोगों के बीच पर्यावरण-संरक्षण से जुड़े मुद्दों पर बातचीत शुरू की। फिर कांडपाल ने उत्तराखंड सेवा निधि से पर्यावरण पर विशेष पाठ्यक्रम का प्रशिक्षण लिया और अपने विद्यालय में भी यह विषय पढ़ाना शुरू कर दिया। 1993 में उन्होंने ‘सीड’ संस्था बनाई और चार-पांच गांवों से शुरू हुई चेतना, चालीस-पचास गांवों तक पहुंचाई। आलेख का पर्यावरण शिक्षा एवं सतत विकास के उद्देश्य से वर्ष 1992 में पर्यावरण चेतना मंच के माध्यम से उन्होंने तीन दिवसीय उत्तराखंड स्तरीय संगोष्ठी का आयोजन कॉलेज में किया। इस संगोष्ठी में सर्वसम्मति से निष्कर्ष निकला कि उत्तराखंड के ग्रामीण विकास के लिए हमें गांव की महिलाओं में सामाजिक और राजनीतिक जागरूकता की जरूरत है। लेकिन इस बैठक में कुल 4 महिलाएं मौजूद थीं। कांडपाल जी ने संगोष्ठी में कहा कि वह अध्यापन के साथ-साथ समाज की रूढ़िवादी मानसिकता को तोड़ने और समुदाय की महिलाओं में सामाजिक और राजनीतिक जागरूकता लाने के लिए अपने आस-पास के गांव में कार्य करेंगे।

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