25.06.2021,Hamari Choupal
{मुकुल व्यास}
पृथ्वी पर पहली बार पारलौकिक रेडियोधर्मी प्लूटोनियम का आइसोटोप मिलने के बाद वैज्ञानिक पृथ्वी पर भारी धातुओं की उत्पत्ति के बारे में नए सिरे से विचार करने लगे हैं। समुद्र तल के नीचे पृथ्वी की पर्पटी में प्लूटोनियम-244 और रेडियोधर्मी आयरन-60 के सूक्ष्म अवशेष मिले हैं। ये दोनों आइसोटोप इस बात के प्रमाण हैं कि लाखों वर्ष पहले हमारी पृथ्वी के पड़ोस में प्रचंड ब्रह्मांडीय घटनाएं हुई थीं। तारों में होने वाले विस्फोटों या बड़े मरणासन्न तारों के विस्फोटों के दौरान भारी तत्वों का निर्माण होता है।
बड़े मरणासन्न तारों के विस्फोट ‘सुपरनोवाÓ कहलाते हैं। इन विस्फोटों के दौरान बनने वाले तत्वों में लोहा, पोटेशियम और आयोडीन जैसे तत्व शामिल हैं जो मानव जीवन के लिए बहुत जरूरी हैं। पहले यह माना गया था कि सोने, यूरेनियम और प्लूटोनियम जैसे अधिक भारी तत्वों का निर्माण तभी हो सकता है जब अधिक प्रचंड ब्रह्मांडीय घटना घटे, जैसे दो न्यूट्रॉन तारे आपस में भिड़ जाएं। न्यूट्रॉन तारा दरअसल एक विशाल तारे का ढहा हुआ मध्य भाग है। ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एंटोन वॉलनर द्वारा किए गए नए अध्ययन से पता चलता है कि भारी धातुओं की उत्पत्ति की कहानी ज्यादा जटिल है। वॉलनर ने कहा कि पृथ्वी पर मिले प्लूटोनियम-244 की उत्पत्ति संभवत: सुपरनोवा विस्फोट के दौरान हुई है या यह इससे भी पहले हुए न्यूट्रॉन तारे के विस्फोट का अवशेष है।
यदि चार अरब वर्ष पहले अंतर-नक्षत्रीय बादल और गैस से पृथ्वी की उत्पत्ति के दौरान प्लूटोनियम-244 और आयरन-60 मौजूद थे तो अब तक उनका क्षय हो चुका होगा। इसका अर्थ यह हुआ कि धातुओं के वर्तमान अवशेष पृथ्वी की उत्पत्ति के बाद अंतरिक्ष में घटी किसी बड़ी घटना से उपजे होंगे। इन धातुओं के नमूनों की डेटिंग से इस बात की पुष्टि होती है कि पृथ्वी के पड़ोस में दो या उससे अधिक सुपरनोवा विस्फोट हुए थे।
वॉलनर ने कहा कि हमारा डेटा इस बात का पहला प्रमाण हो सकता है कि सुपरनोवा विस्फोटों में प्लूटोनियम 244 की उत्पत्ति होती है। यह भी संभव है कि यह रेडियोधर्मी धातु सुपरनोवा विस्फोट से पहले ही अंतर-नक्षत्रीय अंतरिक्ष में मौजूद हो और सुपरनोवा से निकले पदार्थों के साथ सौरमंडल में धकेल दी गई हो। भौतिकविदों के समक्ष एक बहुत बड़ा सवाल यह है कि भारी धातुओं की उत्पत्ति कैसे होती है। लोहे से भारी आधे से ज्यादा तत्वों का निर्माण तारों के गर्भ में विलयन या फ्यूजन की प्रक्रिया से होता है। दूसरी भारी धातुओं को निर्माण के लिए उन्मुक्त न्यूट्रॉन कणों का उच्च घनत्व चाहिए। इसका अर्थ यह हुआ कि इन्हें निर्माण के लिए तारे के गर्भ के बजाय ज्यादा विस्फोटक माहौल चाहिए। इस तरह का माहौल सुपरनोवा या न्यूट्रॉन तारे के विलय या किसी ब्लैकहोल और न्यूट्रॉन तारे की टक्कर जैसी प्रचंड घटनाओं में ही बनता है।
वॉलनर जापान, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप में अपने सहयोगियों के साथ मिल कर यह जानना चाहते थे कि क्या पृथ्वी पर इन ब्रह्मांडीय घटनाओं के सुराग मौजूद हैं। भारी धातुओं के कुछ रेडियोधर्मी रूप हैं जो कुदरती रूप से पृथ्वी पर नहीं पाए जाते। रिसर्चरों ने खासकर प्लूटोनियम-244 की तलाश शुरू की, जिसकी ‘हाफ-लाइफÓ करीब 8 करोड़ वर्ष होती है। हाफ-लाइफ का अर्थ यह हुआ कि रेडियोधर्मी क्षय से करीब 8 करोड़ वर्ष में मूल प्लूटोनियम घट कर आधा रह जाएगा। पृथ्वी की उत्पत्ति के समय जो भी प्लूटोनियम-244 रहा होगा, उसका क्षय हो चुका होगा। अत: रिसर्चरों को इस धातु के जो भी अणु मिलेंगे, उनका स्रोत पारलौकिक होगा। इन दुर्लभ अणुओं की तलाश के लिए उन्होंने प्रशांत महासागर से 1500 मीटर नीचे पृथ्वी की पर्पटी से नमूने एकत्र किए। इन चट्टानों के निर्माण की प्रक्रिया इतनी धीमी है कि एक मिलीमीटर पर्पटी में चार लाख वर्ष का रिकॉर्ड होता है। रिसर्चरों द्वारा एकत्र नमूनों में एक करोड़ वर्ष का इतिहास था।
रिसर्चरों ने प्लूटोनियम-244 के सूक्ष्म अवशेषों को पहचानने के लिए सिडनी में ऑस्ट्रेलिया के परमाणु विज्ञान संस्थान के वेगा एक्सिलेटर का उपयोग किया। वालनेर ने कहा कि जिस सुपरनोवा में आयरन-60 की उत्पत्ति हुई, उसका विस्फोट पूर्णिमा के चांद की तरह चमकदार रहा होगा। इस विस्फोट की चमक को दिन में भी देखा जा सकता था। अतीत में रिसर्चरों के पास ऐसे संवेदनशील तरीके उपलब्ध नहीं थे जो पृथ्वी की पर्पटी में बिखरे हुए प्लूटोनियम-244 के दुर्लभ अणुओं की सटीकता से गणना कर सकें। लेकिन नवीनतम तकनीकों के प्रयोग से किए गए नए अध्ययन में ऐसा करना संभव हो सका है। लेकिन पारलौकिक प्लूटोनियम के पृथ्वी पर पहुंचने के समय का अनुमान लगाना बहुत कठिन है।
बहरहाल यह तय है कि प्लूटोनियम-244 के पृथ्वी पर आगमन के साथ ही आयरन-60 का आगमन हुआ। इन धातुओं का अनुपात स्थिर है, जिससे पता चलता है कि दोनों की उत्पत्ति का स्रोत संभवत: एक ही है। यद्यपि प्लूटोनियम-244 और आयरन-60 के एक साथ पृथ्वी पर पहुंचने से यह कयास जरूर लगाया जा रहा है कि उनकी उत्पत्ति सुपरनोवा से हुई होगी लेकिन ऐसे बहुत से सवाल हैं, जिनके उत्तर मिलना बाकी हैं। वैज्ञानिक कंप्यूटर मॉडलों में सुपरनोवा जैसी परिस्थितियां उत्पन्न करके यह पता लगाने की कोशिश करते हैं कि इन परिस्थितियों में तत्वों का निर्माण कैसे होता है। लेकिन इन मॉडलों में भारी धातुओं के निर्माण के प्रयासों में उन्हें सफलता नहीं मिली है।
इस बीच, जापानी रिसर्चरों ने पता लगाया है कि अंतरिक्ष में भ्रमण करने वाले गैस के बादलों की टक्कर से तारों के समूहों का जन्म होता है। तारों का निर्माण उस वक्त होता है जब अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण की वजह से गैस के बादलों में सिकुडऩ होती है। इन तारों के अलग-अलग द्रव्यमान हो सकते हैं। बड़े द्रव्यमान वाले तारे दूसरे बड़े तारों के साथ मिल कर तारों का एक बहुत बड़ा समूह बना सकते हैं। ऐसे समूहों में दस हजार से अधिक तारे होते हैं।