Dehradun,13,12,2025
देहरादून। उत्तराखंड की सांस्कृतिक राजधानी देहरादून एक बार फिर लोक परंपराओं, वीर गाथाओं और रंग-बिरंगे लोकनृत्यों के उल्लास से सराबोर हो उठी। जौनसार-बावर पौराणिक लोक कला मंच एवं सामाजिक संस्था द्वारा आयोजित तीन दिवसीय ठौउड़ा नृत्य एवं सांस्कृतिक महोत्सव के दूसरे दिन परेड ग्राउंड लोकसंस्कृति के विराट मंच में तब्दील हो गया। सैकड़ों कलाकारों और हजारों दर्शकों की मौजूदगी में हुए इस आयोजन ने न केवल उत्तराखंड बल्कि हिमाचल और राजस्थान की साझा सांस्कृतिक विरासत को भी एक सूत्र में बांध दिया।
महोत्सव के दूसरे दिन का सबसे यादगार क्षण उस समय आया जब गीता धामी पारंपरिक जौनसारी वेशभूषा में मंच पर उतरीं। ‘बेडू पाको बारो मासा’ जैसे लोकप्रिय पहाड़ी लोकगीत पर उनकी सहज, भावपूर्ण और आत्मीय नृत्य प्रस्तुति ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। तालियों की गूंज और लोकधुनों की लय के बीच यह प्रस्तुति केवल एक सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि अपनी जड़ों से जुड़ने का जीवंत संदेश बन गई। उनकी मौजूदगी ने यह भी स्पष्ट किया कि लोकसंस्कृति के संरक्षण में समाज के हर वर्ग की सक्रिय भागीदारी आवश्यक है।
मंच से अपने संबोधन में गीता धामी ने कहा कि उत्तराखंड की लोकसंस्कृति ही राज्य की आत्मा है। ऐसे आयोजन नई पीढ़ी को अपनी परंपराओं से जोड़ने का सशक्त माध्यम हैं। उन्होंने जौनसार-बावर की संस्कृति को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने की आवश्यकता पर बल दिया और पर्यावरण संरक्षण को लोकजीवन से जोड़ते हुए कहा कि पहाड़ों के पेड़-पौधे और जड़ी-बूटियां जीवन का आधार हैं। जौनसारी वेशभूषा को पहनकर मंच पर उपस्थित होना उनके लिए गर्व का विषय है—यह भाव उनके शब्दों और आचरण दोनों में स्पष्ट झलका।
दूसरे दिन की शुरुआत सुबह से ही सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के साथ हुई। जौनसार के कलाकारों ने ऊर्जावान ठोडा नृत्य से वातावरण में जोश भर दिया, तो राजस्थान के घूमर नृत्य ने रंग-बिरंगी छटा बिखेर दी। कुमाऊनी चांचड़ी और गढ़वाली झोड़ा नृत्य ने स्थानीय स्वाद को और गहराया। जौनसारी कलाकारों द्वारा तीर-कमान के साथ प्रस्तुत युद्धकला और तीरंदाजी प्रदर्शन ने महाभारतकालीन योद्धा परंपराओं की झलक दिखाते हुए दर्शकों को रोमांचित किया।
कार्यक्रम में लोकगायन भी विशेष आकर्षण रहा। लोकगायिका रेशमा शाह की प्रस्तुतियों ने माहौल को भावनात्मक ऊंचाई दी और उनकी गायकी पर स्वयं गीता धामी भी थिरकने को विवश हो गईं। लोक गायक नरेश बादशाह, सनी दयाल, अरविंद राणा, जयवीर चौहान सहित उत्तराखंड और हिमाचल के कलाकारों ने जौनसारी लोकधुनों से सांस्कृतिक संध्या को यादगार बना दिया। शाम को आयोजित मुख्य सांस्कृतिक कार्यक्रम में 200 से अधिक कलाकारों की सहभागिता ने परेड ग्राउंड को लोकउत्सव में बदल दिया।
महोत्सव में राज्य मंत्री विनय कुमार रहेला और पीसी नैनवाल भी उपस्थित रहे। कार्यक्रम संरक्षक विनय रोहिल्ला ने कहा कि प्रदेश सरकार युवाओं के हित में निरंतर कार्य कर रही है और रोजगार सृजन की दिशा में ठोस प्रयास किए गए हैं। भाजपा प्रदेश मंत्री नेहा जोशी ने पहाड़ की संस्कृति और युवाशक्ति को उत्तराखंड की पहचान बताते हुए आयोजन से जुड़े कलाकारों और संस्था के प्रयासों की सराहना की।
इस अवसर पर संस्था के अध्यक्ष कुंदन सिंह चौहान, महासचिव प्रशांत नेगी, नरेश चौहान, गंभीर सिंह चौहान सहित अनेक गणमान्य लोग मौजूद रहे। वरिष्ठ पत्रकार और कार्यक्रम के मीडिया प्रभारी बलदेव चंद्र भट्ट ने गीता धामी को जौनसार-बावर का पारंपरिक हथियार डांगरा भेंट कर सम्मानित किया। यह कुल्हाड़ीनुमा बहुपयोगी औजार जौनसारी जीवनशैली, श्रमशीलता और आत्मरक्षा की परंपरा का प्रतीक माना जाता है।
आयोजकों के अनुसार यह महोत्सव केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं, बल्कि उत्तराखंड और हिमाचल की साझा सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित और प्रचारित करने का प्रयास है। महिलाओं और युवाओं को प्रोत्साहित करने के लिए विशेष प्रतियोगिताएं भी आयोजित की गई हैं। परेड ग्राउंड में लगे हस्तशिल्प, स्थानीय व्यंजन और सांस्कृतिक प्रदर्शनी के स्टॉल्स ने दर्शकों को लोकजीवन से रूबरू कराया। प्रशासन द्वारा सुरक्षा और यातायात के पुख्ता इंतजाम किए गए, वहीं पर्यटन विभाग का मानना है कि ऐसे आयोजन राज्य की सांस्कृतिक सॉफ्ट पावर को मजबूत करते हैं।
तीन दिवसीय ठौउड़ा नृत्य एवं सांस्कृतिक महोत्सव का समापन 14 दिसंबर को विशेष प्रस्तुतियों और पुरस्कार वितरण के साथ होगा। लोकसंस्कृति के इस महाकुंभ ने यह स्पष्ट कर दिया है कि जब परंपरा, कला और जनभागीदारी एक मंच पर आती हैं, तो उत्तराखंड की सांस्कृतिक आत्मा पूरे वैभव के साथ जीवंत हो उठती है। यह महोत्सव न केवल सांस्कृतिक उत्सव है, बल्कि उत्तराखंड की विविधता का प्रतीक भी। यदि आप अपनी जड़ों से जुड़ना चाहते हैं, तो कल अंतिम दिन परेड ग्राउंड पहुंचें।
