देहरादून,08,11,2025
देहरादून। तुलाज इंस्टीट्यूट ने 10वें देहरादून इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल (डीआईएफएफ) के दूसरे दिन की मेजबानी की, जिसमें फिल्म जगत की नामचीन हस्तियों, निर्देशकों, लेखकों और सिनेमा के छात्रों ने कला, अनुभव और कहानी कहने की प्रक्रिया पर सार्थक चर्चा की। दिनभर फिल्म स्क्रीनिंग्स, संवाद सत्रों और पैनल चर्चाओं का सिलसिला चलता रहा, जिनका केंद्र अभिनय, रंगमंच, सिनेमा की कला और बदलते मनोरंजन परिदृश्य पर था। तुलाज़ इंस्टीट्यूट और तुलाज़ इंटरनेशनल स्कूल के छात्रों को इस अवसर पर फिल्म जगत की जानी-मानी हस्तियों कृ रणवीर शौरी, दर्शन जरीवाला, इनामुलहक, लिलिपुट (एम.एम. फारूकी), जमील खान, मुकेश खन्ना, सुधीप्तो सेन और रईस खान आदि कृ से रूबरू होने और उनके अनुभव सुनने का मौका मिला। सभी कलाकारों ने अपने थिएटर, सिनेमा और ओटीटी जगत के अनुभव साझा किए। रणवीर शौरी ने रियलिटी शोज़ और कैमरे पर अपने अनुभव साझा करते हुए कहा, “बिग बॉस जैसे शो में हम दो चीज़ों के लिए जाते हैं कृ एक अनुभव के लिए और दूसरा यह समझने के लिए कि जब इंसान लगातार कैमरे के सामने होता है तो उसका व्यवहार कैसे बदलता है। जब हर समय कोई आपको देख रहा हो, तो आपका असली रूप बदलने लगता है।” उनकी आगामी फिल्म ‘जस्सी वेड्स जस्सी’ का ट्रेलर भी मौके पर प्रदर्शित किया गया, जिसे छात्रों ने खूब सराहा।
वरिष्ठ अभिनेता दर्शन जरीवाला ने अपने सत्र में, जिसका संचालन रूपा सोनी ने किया, थिएटर से अपने जुड़ाव पर कहा, “थिएटर से ही मेरा सफर शुरू हुआ था। मेरी मां मशहूर गुजराती रंगमंच अभिनेत्री थीं, और हमारे घर में हमेशा थिएटर का माहौल रहता था। हर अभिनेता के दिल में थिएटर के लिए एक खास जगह होती है। फिल्में सामूहिक माध्यम हैं, लेकिन थिएटर अभिनेता को असली स्वतंत्रता देता है।”
सहारनपुर के रहने वाले अभिनेता-लेखक इनामुलहक ने कहा, “मैं यहां अपने घर जैसा महसूस कर रहा हूं क्योंकि सहारनपुर देहरादून से बहुत करीब है। मैंने 12 साल की उम्र में थिएटर शुरू किया था। मैंने कभी तय नहीं किया कि अभिनेता बनना है, रास्ता अपने आप खुलता चला गया। मैंने एनएसडी से प्रशिक्षण लिया और फिर केवल 500 उधार लेकर मुंबई चला गया। किताबों ने मुझे दुनिया की सैर कराई और वहीं से लेखन की शुरुआत हुई। इस यात्रा में जुनून और एकाग्रता सबसे जरूरी है।”
प्रख्यात अभिनेता एम.एम. फारूकी उर्फ लिलिपुट ने कहा, “फिल्म इंडस्ट्री में दो तरह के लोग आते हैं कृ एक जो किसी और जैसा बनना चाहते हैं, और दूसरे जो खुद को दुनिया के सामने लाना चाहते हैं। अभिनय कोई शौक नहीं है, यह जन्मजात होता है। सिनेमा थिएटर से ज्यादा चुनौतीपूर्ण है। ऋषि कपूर ने मुझसे कहा था कि कैमरे के सामने ‘ऑन’ होना और उसके बाद ‘ऑफ’ होना सीखो यह कला समय के साथ आती है।”
लोकप्रिय अभिनेता जमील खान, जिन्हें ‘गुल्लक’ और ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ के लिए जाना जाता है, ने कहा, “मैं नैनीताल के शेरवुड कॉलेज में पढ़ा हूं, और वो समय मेरे जीवन का स्वर्णिम काल था। थिएटर ने मेरी नींव रखी। जितनी जल्दी कोई अपना उद्देश्य समझ ले, उतना बेहतर, क्योंकि आज ध्यान भटकाने वाली चीजें बहुत हैं। मैंने शुरू में ओटीटी को लेकर संशय किया था और ‘गुल्लक’ करने से पहले मैंने संकोच किया था, लेकिन संतोष मिश्रा के किरदार ने जो प्यार दिलाया, वह अविस्मरणीय है।” तुलाज़ इंस्टीट्यूट का परिसर पूरे दिन उत्साह से भरा रहा, जहां विद्यार्थियों ने कलाकारों से प्रश्न पूछे और सिनेमा व अभिनय की वास्तविक दुनिया से जुड़े अनुभवों को समझा। निर्देशक सुधीप्तो सेन ने सिनेमा को संवाद और जिम्मेदारी का माध्यम बताया, वहीं मुकेश खन्ना ने अभिनय के साथ चरित्र निर्माण और पेशेवर ईमानदारी के महत्व पर बल दिया। रईस खान ने समकालीन सिनेमा और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स में उभरते अवसरों पर चर्चा की। इस अवसर पर तुलाज़ ग्रुप के वाइस चेयरमैन रौनक जैन ने कहा, “हमारे लिए यह गर्व की बात है कि 10वें देहरादून इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के दूसरे दिन की मेजबानी तुला’स इंस्टीट्यूट ने की। ऐसे आयोजन विद्यार्थियों को प्रेरित करते हैं, उनके कलात्मक दृष्टिकोण को विस्तारित करते हैं, और उन्हें सिनेमा जगत की हस्तियों से सीधे सीखने का अवसर प्रदान करते हैं।”दिन का समापन फिल्म स्क्रीनिंग्स और संवाद सत्रों के साथ हुआ। कार्यक्रम में वाइस चेयरमैन रौनक जैन, सेक्रेटरी संगीता जैन, वाइस प्रेसिडेंट (टेक्नोलॉजी) राघव गर्ग, मंजू गर्ग, डायरेक्टर डॉ. शैलेन्द्र कुमार तिवारी, डायरेक्टर (फार्मेसी) डॉ. दीपक नंदा, एडिशनल डायरेक्टर डॉ. निशांत सक्सेना और रजिस्ट्रार डॉ. विजय कुमार उपाध्याय उपस्थित रहे।