उत्तराखंड,11,10,2025
देहरादून। भारतीय शास्त्रीय संगीत की विश्व विख्यात मधुर सुर संगीत के संसार में अपनी गायकी को लोकप्रिय बनाने वाले I कश्यप बंधु ने झपताल में राग बिहाग से अपनी प्रस्तुति की शुरुआत की और एक ताल बंदिश ‘काहे मोरे मन बतानी’ में परिवर्तित हो दर्शकों का दिल जीत लिया। इसके बाद उन्होंने राग मेघ में एक बंदिश पेश की, 'गगन गरज दमकत दामिनी..' भव्य विरासत की इस महफिल में कश्यप बंधु के साथ तबले पर मशहूर पं. शुभ महाराज, हारमोनियम पर सुमित मिश्रा और तानपुरा पर पद्माकर कश्यपव पीयूष मिश्रा रहे I इस अनूठी और आकर्षण का केंद्र बनी रहने वाली दो सगे भाइयों की जोड़ी कश्यप बंधु ने बचपन में ही अपने माता-पिता, पं. रामप्रकाश मिश्र और श्रीमती मीरा मिश्र से संगीत की प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। बाद में उन्होंने बनारस घराने के गुरुओं, पद्मभूषण पं. राजन मिश्र और पं. साजन मिश्र के मार्गदर्शन में प्रशिक्षण प्राप्त किया। बनारस गायकी वाली यह जोड़ी अपनी उत्कृष्ट लयकारी और बेजोड़ मधुरता के लिए जानी जाती है।

कश्यप बंधु की आवाज़ प्रभावशाली और भावपूर्ण है, जो तीनों सप्तकों में समान सहजता से प्रवाहित होती है। कश्यप बंधु के पास ख़याल के साथ-साथ ठुमरी, दादरा, टप्पा और भजनों में मधुर “बंदिशों” का एक समृद्ध संग्रह है जो श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देता है। वे आकाशवाणी और दूरदर्शन के शीर्षस्थ कलाकार भी हैं। उन्हें संगीत नाटक अकादमी, नई दिल्ली द्वारा उस्ताद बिस्मिल्लाह खां युवा पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। साथ ही आईसीसीआर, भारत सरकार के वे कलाकार भी हैं। वे स्पिकमैके और सुर श्रृंगार संसद, मुंबई द्वारा सुरमणि के पैनलबद्ध कलाकार हैं। कश्यप बंधु ने विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठित मंचों पर प्रस्तुति दी है, जिनमें सवाई गंधर्व भीमसेन महोत्सव, पुणे, सप्तक संगीत समारोह, अहमदाबाद, उस्ताद अमीर खां संगीत समारोह, इंदौर और कई अन्य शामिल हैं I देश-विदेश में विभिन्न प्रतिष्ठित पुरस्कारों के विजेता डॉ. प्रभाकर कश्यप वर्तमान में पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ में सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं और डॉ. दिवाकर कश्यप इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़, छत्तीसगढ़ में सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं।