देहरादून,19,09,2025
देहरादून। उत्तराखंड की मासूम “नन्ही परी” के साथ वर्ष 2014 में हुई दरिंदगी की घटना एक बार फिर प्रदेश की अंतरात्मा को झकझोर रही है। सुप्रीम कोर्ट से मुख्य आरोपी के दोषमुक्त होने के बाद जहां राज्य सरकार ने पुनर्विचार याचिका दाखिल करने का निर्णय लिया है, वहीं आज पीड़िता के पिता ने एक उत्तरांचल प्रेस क्लब में भावुक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर न्याय की गुहार लगाई। उन्होंने कहा, “मेरी बेटी की आत्मा आज भी न्याय की प्रतीक्षा कर रही है। अगर देवभूमि में भी बेटियों को न्याय नहीं मिलेगा, तो हम कहां जाएं?”
जनआक्रोश की लहर फिर उभरी
बीते कुछ दिनों से हल्द्वानी से देहरादून तक सड़कों पर जनसैलाब उमड़ पड़ा है। महिलाएं, युवा, सामाजिक संगठन, व्यापारी और पूर्व सैनिक एकजुट होकर कैंडल मार्च निकाल रहे हैं। “नन्ही परी को न्याय दो” के नारों से शहर गूंज उठा है। लोगों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट से आरोपी के बरी होने से वे स्तब्ध हैं और यह न्याय व्यवस्था पर सवाल खड़ा करता है।
सरकार की प्रतिक्रिया
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस जनभावना को गंभीरता से लेते हुए न्याय विभाग को सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा, “उत्तराखंड सरकार इस मामले को सर्वोच्च प्राथमिकता पर रखेगी। हम देश की सबसे बेहतरीन कानूनी टीम को नियुक्त करेंगे ताकि दोषी को सजा दिलाई जा सके।”
मुख्यमंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि प्रदेश में सत्यापन अभियान तेज़ किया गया है ताकि असामाजिक तत्वों की पहचान की जा सके। उन्होंने कहा, “देवभूमि की अस्मिता पर कोई आंच नहीं आने दी जाएगी।”
पिता की पीड़ा और अपील
आज की प्रेस कॉन्फ्रेंस में पीड़िता के पिता ने कहा, “मेरी बेटी के साथ जो हुआ, वह किसी भी समाज के लिए कलंक है। हमने निचली अदालत और हाईकोर्ट से न्याय पाया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से आरोपी के छूटने से हमारी उम्मीदें टूट गई हैं। मैं मुख्यमंत्री से निवेदन करता हूँ कि इस लड़ाई को अंत तक लड़ा जाए।”
मुख्यमंत्री से दो प्रमुख अनुरोध:
- सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल कर दोषमुक्त आरोपी को सजा दिलाने की कानूनी प्रक्रिया दोबारा शुरू की जाए।
न्याय विभाग को निर्देश दिए जाएं कि सर्वोच्च न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दायर की जाए और इस मामले की मजबूत पैरवी के लिए देश की सर्वश्रेष्ठ कानूनी टीम नियुक्त की जाए। - देवभूमि की बेटियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रदेश में असामाजिक तत्वों की पहचान हेतु व्यापक सत्यापन अभियान चलाया जाए।
सरकार यह सुनिश्चित करे कि भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो और प्रदेश की सांस्कृतिक अस्मिता सुरक्षित रहे।
उन्होंने यह भी कहा कि यदि न्याय नहीं मिला तो वे परिवार सहित आमरण अनशन पर बैठेंगे। उनकी इस घोषणा से माहौल और भी भावुक हो गया।
पृष्ठभूमि: क्या है नन्ही परी मामला?
20 नवम्बर 2014 को पिथौरागढ़ की सात वर्षीय बच्ची अपने परिवार के साथ हल्द्वानी के रामलीला मैदान में एक शादी समारोह में आई थी। समारोह के दौरान वह लापता हो गई। छह दिन बाद उसका शव गौला नदी से मिला। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में गैंगरेप और हत्या की पुष्टि हुई। पुलिस ने मुख्य आरोपी अख्तर अली को चंडीगढ़ से गिरफ्तार किया और दो अन्य को भी पकड़ा। मार्च 2016 में विशेष अदालत ने अख्तर अली को फांसी की सजा सुनाई, जिसे हाईकोर्ट ने बरकरार रखा। लेकिन हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने उसे दोषमुक्त कर दिया।
जनता की भावनाएं उबाल पर हैं। सरकार ने कानूनी लड़ाई को दोबारा शुरू करने का ऐलान किया है। लेकिन यह स्पष्ट है कि यह सिर्फ एक कानूनी मामला नहीं, बल्कि उत्तराखंड की अस्मिता और बेटियों की सुरक्षा का सवाल बन चुका है।
नन्ही परी की कहानी अब सिर्फ एक बच्ची की नहीं, बल्कि न्याय की प्रतीक बन चुकी है।