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लोहड़ी उत्तर भारत का एक प्रसिद्ध और पारंपरिक त्योहार है

लोहड़ी उत्तर भारत का एक प्रसिद्ध और पारंपरिक त्योहार है, जो न केवल सांस्कृतिक धरोहर को सहेजता है, बल्कि समाज में खुशहाली और भाईचारे का संदेश भी देता है। यह त्योहार मुख्य रूप से सर्दियों के अंत और नई फसल की कटाई का प्रतीक है। लोहड़ी का उत्सव समाज के हर वर्ग को एक साथ जोड़ता है, जहां लोग अग्नि के चारों ओर इकट्ठा होकर अपने हर्ष और उल्लास का प्रदर्शन करते हैं।

लोहड़ी का त्योहार कब मनाया जाता है?
लोहड़ी का त्योहार हर साल 13 जनवरी को मनाया जाता है। यह त्योहार मकर संक्रांति से एक दिन पहले आता है, जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं। इस समय किसान अपनी फसल काटकर घर लाते हैं और उसका जश्न मनाते हैं। यह त्योहार सर्दियों के अंत का संकेत देता है और गर्मी के मौसम का स्वागत करता है। इस दिन को नई फसल के लिए धन्यवाद देने के रूप में भी देखा जाता है।

लोहड़ी का अर्थ
लोहड़ी शब्द के पीछे कई पौराणिक और सांस्कृतिक कहानियां जुड़ी हुई हैं। ऐसा माना जाता है कि यह शब्द “लोह” से बना है, जिसका अर्थ होता है लोहे की चिमनी या धधकती हुई अग्नि। दूसरी मान्यता के अनुसार, यह “तिलोहड़ी” शब्द का अपभ्रंश है, जिसमें तिल (तिल) और रोड़ी (गुड़) का मिश्रण होता है। लोहड़ी का अर्थ फसल, समृद्धि और समाज में एकता का प्रतीक भी है।

लोहड़ी के त्योहार का महत्व
लोहड़ी का त्योहार कृषि आधारित समाज के लिए विशेष महत्व रखता है। यह त्योहार नई फसल के आगमन की खुशी और किसानों की मेहनत का सम्मान करने का दिन है। धार्मिक दृष्टि से, यह त्योहार अग्नि देवता, सूर्य देव, भगवान श्रीकृष्ण और मां आदिशक्ति को समर्पित है। इस दिन लोग अग्नि के चारों ओर परिक्रमा करते हैं और तिल, गुड़, मूँगफली और रेवड़ी अर्पित करते हैं। यह प्रक्रिया सुख, समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य की कामना का प्रतीक है।

पौराणिक कथाओं में भी लोहड़ी का महत्व है। एक कथा के अनुसार, राजा दक्ष के यज्ञ में माता सती के आत्मदाह के कारण इस त्योहार पर अग्नि पूजा का विशेष महत्व है। यह पर्व समाज में सामूहिकता और सहयोग की भावना को बढ़ावा देता है।
लोहड़ी त्योहार कहां मनाया जाता है?
लोहड़ी मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली और उत्तर भारत के अन्य हिस्सों में मनाई जाती है। पंजाब और हरियाणा में यह त्योहार विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह कृषि प्रधान राज्यों के लिए नई फसल की खुशी का प्रतीक है।

लोहड़ी का त्योहार का आयोजन
लोहड़ी के दिन परिवार और मित्रजन एक साथ इकट्ठा होते हैं। इस दिन अग्नि जलाना और उसकी परिक्रमा करना मुख्य आयोजन है। लोग भांगड़ा और गिद्दा नृत्य करते हैं, पारंपरिक गीत गाते हैं, और तिल, गुड़, मूँगफली, रेवड़ी जैसी वस्तुओं को अग्नि को अर्पित करते हैं। इस दिन मक्की की रोटी और सरसों का साग का विशेष महत्व होता है।
लोहड़ी केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि प्रकृति और समाज के प्रति आभार प्रकट करने का एक माध्यम है। यह पर्व हमें हमारी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ता है और सामूहिकता का महत्व सिखाता है। लोहड़ी न केवल किसानों की मेहनत का सम्मान करती है, बल्कि समाज में भाईचारे और प्रेम का संदेश भी देती है। ऐसे त्योहार हमारी परंपराओं और मूल्यों को सजीव रखते हैं और आने वाली पीढ़ियों को अपनी संस्कृति से जोड़ते हैं।

लोहड़ी की एक और पौराणिक कथा
लोहड़ी के पर्व से संबंधित एक पौराणिक कथा है। जो आज भी बेहद प्रसिद्ध है। लोहड़ी के दिन एक लोकगीत गाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि एक बाद मुगल बादशाह अकबर के शासनकाल में दुल्ला भट्टी नाम का एक लुटेरा रहता है। वह अमीरों से धन चुराकर गरीबों में बांट दिया करता था। साथ ही वह गरीब, हिंदू, सिख समुदाय की लड़कियों के विवाह में मदद करता था।
इस दौरान एक बार दुल्ला भट्टी को सुंदरी और मुंदरी नाम की दो बहनों के बारे में पता चला जो बहुत ही गरीब और रुपवान थीं। उन दोनों बहनों को जमींदार अगवा कर अपने साथ ले गए थे। इसके बाद दुल्ला भट्टी ने उन दोनों को ढूंढा और वहां से उन्हें बचाकर जंगल में लेकर जाकर उनकी शादी करवाकर कन्यादान किया। जिस दिन यह सारी घटना हुई उस दिन लोहड़ी का पर्व था। इसके बाद पंजाब में उन्हें नायक की उपाधि दी गई।

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