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प्रदूषण से बढ़ती बीमारियों से परेशान लोग  :अखिलेश आर्येंदु

दिल्ली में पर्यावरण प्रदूषण की समस्या कोई नई बात नहीं है। साल के बारहों महीने एनसीआर वालों को प्रदूषण के सबसे खतरनाक या अति खतरनाक स्तर के असर से जूझना पड़ता है। इसे देखते हुए सरकार ने वायु गुणवत्ता सुधारने के लिए कई कदम उठाए। जिसके तहत दिल्ली में बाहर के वाहनों के प्रवेश को रोकने के लिए पूर्वी व पश्चिमी एक्सप्रेस- वे का निर्माण, पटाखे की बिक्री पर प्रतिबंध, पंजाब व हरियाणा के किसानों को 1400 करोड़ रुपए उपलब्ध कराना, एनसीआर को 2600 उद्योगों को पाइप्ड नेचुरल गैस  मुहैया कराना, बदरपुर बिजली संयंत्र को बंद करना, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में 2.800 ईंट भट्टों में जिंग- जैग मुहैया कराने के साथ और निर्माण और विध्वंस अपशिष्ट प्रबंधन नियम की शुरूआत जैसे कई ठोस कदम शामिल हैं। बावजूद एनसीआर में वायु प्रदूषण की समस्या विकट रुप में बनी रहती है। वायु प्रदूषण की यह समस्या कई और समस्याओं को पैदा कर रही है जिनमें लोगों की उम्र में कमी, नई-नई बीमारियों से असमय में मृत्यु और प्राकृतिक संसाधनों का प्रदूषित होते रहना, प्रसिद्ध पर्याटक स्थलों का प्रदूषित होना जैसी समस्याएं शामिल हैं।
दिल्ली- एनसीआर में प्रदूषण का सबसे भयंकर असर लोगों का नई- नई बीमारियों से हलाकान होना है। दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में दिल्ली कभी पहले तो कभी दूसरे स्थान पर रहती है। कई बार तो क्यूआई 500 के आंकड़े को पार कर जाता है। जाहिर तौर पर इसका असर सेहत पर जबरदस्त तरीके से पड़ता ही है। 500 क्यूआई का पार जाना विश्व स्वास्थ्य संगठन के निर्धारित सीमा से 100 गुना ज्यादा है। दिल्ली- एनसीआर में 3.3 करोड़ लोग रहते हैं। यानी दुनिया के कई बड़े देशों की आबादी के लगभग। सोचा जा सकता है। दिल्ली- एनसीआर की इतना बड़ी आबादी हर वक्त जहरीली गैसों को श्वास के रूप में लेना जरूरी है। इस इलाके में रहना है तो इस जहर को पीना ही पड़ेगा, दूसरा कोई विकल्प नही है। शिकागो विश्वविद्यालय के एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट के मुताबिक दिल्ली में हवा का अति खतरनाक बने रहने की वजह से यहां रहने वाले लोगों की जिंदगी करीब 11.9 वर्ष कम हो गई है। पिछले कुछ वर्षों में एनसीआर की हवा के जहरीले होने की वजह से सांस संबंधी बीमारियों में तेजी से इजाफा हुआ है। दिल, फेफड़े, आंत, आंख, हड्डी और यकृत संबंधी बीमारियां बहुत तेजी से बढ़ी हैं। शारीरिक के साथ मानसिक सेहत पर भी जबरदस्त असर पड़ा है। शोध के मुताबिक पिछले कुछ सालों में दिल्ली- एनसीआर में रहने वाले बच्चों में याद रखने की क्षमता लगातार घट रही है। साथ ही गणित के सवाल करने में भी बच्चा पहले जैसे नहीं हैं। जाहिर तौर पर बढ़ते प्रदूषण से आने वाले वक्त में और कई नई समस्याएं पैदा हो सकती हैं। यदि प्रदूषण से बच्चों की याददाश्त पर असर पड़ रहा है तो देश में जहां भी प्रदूषण की समस्या बढ़ेगी वहां इस तरह की समस्याओं का बढ़ना लाजमी है।
यह की महज हवा जहरीली नहीं हुई है बल्कि जल, ध्वनि, मिट्टी और प्रकाश प्रदूषण की भी समस्या लगातार बढ़ रही है। एक अमरीकी रिसर्च के मुताबिक भारत के बड़े शहरों में मिट्टी, जल और ध्वनि प्रदूषण भी तेजी से बढ़ रहा है। दिल्ली में यमुना, कानपुर, वाराणसी व प्रयागराज में गंगा और गुजरात व मध्य प्रदेश में नर्मदा का पानी प्रदूषित हो गया है। दिल्ली में यमुना का पानी छूने लायक नहीं रह गया है। इससे आवारा जानवरों और पक्षियों में तमाम तरह की बीमारियां बढ़ गई हैं। आए दिन मवेशी और पक्षी मौत के शिकार होते दिखते हैं।
डाउन टू अर्थ ने अपनी एक रिपोर्ट साल 2018 से लेकर साल 2023 के अक्टूबर महीने के बीच 25 रिसर्च बताते हैं कि भारत के बच्चों पर वायु प्रदूषण का असर महज उत्तर भारत तक सीमित नहीं है यानी देश के तमाम बड़े शहर इसके चपेट में हैं। जिस वजह से प्रेगनेंट लेडी के बच्चों के जन्म के वक्त उनके वजन में कमी, वक्त से पहले प्रसव और मरे हुए बच्चों के जन्म जैसी तमाम दिक्कतें देखने को मिलती हैं। यूनाइटेड नेशन की रिपोर्ट वताती है कि भारत में एनीमिया से ग्रस्त बच्चे करोड़ों में हैं। जिस तरह से एनसीआर में वाहनों की तादाद लगातार बढ़ रही है, धूल की समस्या बढ़ रही है इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि आने वाला वक्त सेहत के मद्देनजर बहुत खराब होगा।  यदि देश को पांचवी आर्थिक महाशक्ति बनना है तो प्रदूषण की समस्या और इससे होने वाली दुश्वारियों को भी समझना होगा। एनसीआर में जिस तरह से प्रदूषण भयावह रूप अख्तियार कर रहा है आने वाले वक्त में बहुत बड़ी त्रासदी के रूप में सामने आ सकता है। एनसीआर आने वाले वक्त में एक जहरीली गैस चैंबर के रूप में होगी, जहां लोगों का रहना नामुमकिन होगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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