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डॉ हंसा योगेन्द्र, निदेशक द योगा इंस्टीट्यूट पधारी परमार्थ निकेतन

ऋषिकेश(आरएनएस)। परमार्थ निकेतन में द योगा इंस्टीट्यूट की निदेशक डॉ हंसा योगेन्द्र जी पधारी। परमार्थ गुरूकुल के ऋषिकुमारों ने वेदमंत्रों और शंखध्वनि से उनका दिव्य स्वागत किया।  परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और साध्वी भगवती सरस्वती जी के साथ डा हंसा योगेन्द्र जी की दिव्य भेंटवार्ता हुई। योग की शिखरस्थ विभूतियों ने योग के वास्तविक स्वरूप को वैश्विक स्तर तक पहुंचाने हेतु विशद् चर्चा की।  स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि योग का तात्पर्य स्ट्रेच, व्यायाम या लचीला शरीर से नहीं है बल्कि यह हमारे ऋषियों द्वारा कई शताब्दियों तक विकसित व शोध की हुई एक दिव्य कला है। यह एक आध्यात्मिक अनुशासन है जिसका उद्देश्य शरीर, मन और आत्मा के बीच शाश्वत शांति और सद्भाव बनाये रखने है तथा मानसिक प्रदूषण को स्वच्छ करना है।योग हमारी चेतना को सार्वभौमिक चेतना से मिलाने कराने का मार्ग दिखाता है। योग के माध्यम से प्रकृति और स्वयं के बीच एकता और दिव्य संबंध का अनुभव होने लगता है।
साध्वी भगवती सरस्वती जी ने कहा कि योग की वास्तविक विद्या उतनी ही पुरानी है जितनी भारत की सभ्यता इसलिये तो भगवान शिव को प्रथम योगी या आदियोगी कहा गया है। योग हमें हमारी आनंदमय स्थिति में वापस ले जाता है। साध्वी जी ने कहा कि योग का सार आत्मा, मन, शरीर और प्रकृति के साथ एकता का संबंध स्थापित करने से है; स्वयं को अपने आसपास की दुनिया से जोड़ना है।
डा हंसा योगेन्द्र ही ने कहा कि योग जीवन को बैलेंस करता है। शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को बैलेंस कर तनाव को कम करता है तथा एकाग्रता, शांति और सद्भाव की भावना को बढ़ावा देने में मदद करता है। योग पूर्ण जीवन जीने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करता है तथा आध्यात्मिक विकास के लिए एक उत्कृष्ट तकनीक प्रदान करता है।
परमार्थ निकेतन में दो सप्ताह से चल रहे क्रिया योग के समापन अवसर पर विश्व के अमेरिका, इंग्लैंड, अस्ट्रेलिया, नीदरलैंड, जर्मनी, वियतनाम, रूस, नार्वे, फिनलैंड, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रिया, स्पेन आदि अनेक देशों से आये योग जिज्ञासुओं को सर्टिफिकेट देकर योग के माध्यम से प्रकृति व पर्यावरण की सेवा का संदेश दिया।
विश्व के विभिन्न देशों से आये योग जिज्ञासुओं ने 15 दिनों तक परमार्थ निकेतन के दिव्य वातावरण में रहकर योग, ध्यान, साधना, मंत्रों का उच्चारण, सत्संग और हवन आदि अनेक आध्यात्मिक विधाओं की जानकारी प्राप्त की और दिव्य विभूतियों का आशीर्वाद सटिफिकेट्स पाकर गदगद हो उठे।

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