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सरकार क्यों लीज पर देने जा रही है संपत्ति

01,09,2021,Hamari Choupal

{चंद्रभूषण}

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सरकारी संसाधनों को लीज पर देकर अगले चार वर्षों में छह लाख करोड़ रुपये जुटाने की घोषणा की है। नैशनल मॉनिटाइजेशन पाइपलाइन (एनएमपी) नाम की यह योजना इसी साल लाने की बात उन्होंने इस बार के अपने बजट भाषण में कही थी। एनएमपी का सीधा संबंध पिछले साल घोषित नैशनल इन्फ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन (एनआईपी) से है। एनआईपी सौ लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की एक बृहद इन्फ्रास्ट्रचर योजना है, जिसको अभी 111 लाख करोड़ रुपये की बताया जा रहा है। दरअसल, मोदी सरकार बहुत बड़े आंकड़ों के जरिये दुनिया को यह संकेत देना चाहती है कि भारत में इन्फ्रास्ट्रक्चर के स्तर पर कुछ वैसा ही घटित हो रहा है, जैसा 1930 के दशक में अमेरिका में हुआ था, या फिर पिछले तीसेक वर्षों में चीन में हुआ है।

क्या पैसा आएगा?

इसके लिए 100 करोड़ रुपये से ऊपर की 7320 ढांचागत परियोजनाओं को एक ही सूची में डाल दिया गया है और इनको अमल में उतारने का काम केंद्र सरकार (39 प्रतिशत), राज्य सरकारों (40 प्रतिशत) और प्राइवेट सेक्टर (21 प्रतिशत) को मिलकर करना है। नैशनल मॉनिटाइजेशन पाइपलाइन इसी के लिए पैसा जुटाने की एक कवायद है। यह योजना अभी घोषित तो हो गई है लेकिन इससे पैसे कितने आएंगे, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। एनआईपी के लिए सरकारी धन एनएमपी के अलावा सरकारी खजाने और विनिवेश से आना है। इसमें सरकारी खजाने का भरना या खाली रहना अर्थव्यवस्था की गति और उससे होने वाले टैक्सेशन पर निर्भर करता है। लेकिन एनएमपी और विनिवेश से, यानी सरकारी परिसंपत्तियों को निजी उपयोग के लिए देने पर आने वाले पैसों को लेकर कुछ समझ बनानी हो तो पिछले साल के एक आंकड़े पर गौर कर सकते हैं।

सन 2020 के बजट भाषण में वित्त मंत्री ने विनिवेश के जरिये अगले (अभी पिछले) वित्त वर्ष में 2 लाख 10 हजार करोड़ रुपये जुटाने की घोषणा की थी। लेकिन वास्तव में खींच-तानकर यह रकम 19,499 करोड़ रुपये तक पहुंच पाई, जो लक्ष्य का बमुश्किल 9 फीसदी था। इस हकीकत को ध्यान में रखकर ही मौजूदा वित्त वर्ष में विनिवेश का लक्ष्य 1 लाख 75 हजार करोड़ रखा गया। हालात तब से अब तक कुछ सुधरे जरूर हैं, पर इतने नहीं कि इस वित्त वर्ष के बचे हुए सात महीनों में एनएमपी के मद में 88 हजार करोड़ रुपये और जुटाए जा सकें।

तो एक मामला नैशनल मॉनिटाइजेशन पाइपलाइन से जुड़े लक्ष्यों के यथार्थपरक होने से जुड़ा है। लेकिन लोगों में चर्चा इस बात की ज्यादा है कि सरकार इतने लंबे समय में खड़े किए गए महत्वपूर्ण संसाधनों को औने-पौने

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