Monday , May 20 2024

व्यर्थ बोल पर अटेंशन : मनोज श्रीवास्तव

20,02,2022,Hamari Choupal

संकल्प शक्ति से वाणी शक्ति पर कंट्रोल हो जाता है। इसके लिये तीन बातें बोल के लिए कही गयी है – *कम बोलो, धीरे बोलो और मधुर बोलो*”

व्यर्थ बोलने की निशानी है – वह ज्यादा बोलेगा, मजबूरी से समय प्रमाण, संगठन प्रमाण अपने को कंट्रोल करेगा लेकिन अंदर ऐसा महसूस करेगा जैसे कोई ने शान्ति में चुप रहने लिए बांधा है। व्यर्थ बोल बड़े-ते-बड़ा नुकसान क्या करता है? एक तो शारीरिक एनर्जी समाप्त होती क्योंकि खर्च होता है और दूसरा – समय व्यर्थ जाता है।

व्यर्थ बोलने वाले की आदत क्या होगी? छोटी-सी बात को बहुत लम्बा-चौड़ा करेगा और बात करने का तरीका कथा मुआफिक होगा।

व्यर्थ बोलने वाला अपनी बुद्धि में व्यर्थ बातें, व्यर्थ समाचार, चारों ओर का कूड़ा-किचड़ा जरूर इकट्ठा करेगा क्योंकि उनको कथा का रमणीक रूप देना पड़ेगा।

इसलिए जिस समय और जिस स्थान पर जो बोल आवश्यक हैं, युक्तियुक्त हैं, स्वयं के और दूसरी आत्माओं के लाभ-लायक हैं, वही बोल बोलो। समान्यतः बोल के ऊपर अटेन्शन कम होता है, इसलिए बोल पर सदैव डबल अण्डरलाइन रखें ।

व्यर्थ वा साधारण बोल के भिन्न-भिन्न रूप मिलते है।
एक – सीमा से बाहर अर्थात् लिमिट से परे हंसी-मजाक,
दूसरा – टोंटिंग वे,
तीसरा – इधर-उधर के समाचार इकट्ठा कर सुनना और सुनाना,
चौथा – सेवा समाचार के साथ सेवाधारियों की कमजोरी का चिंतन – यह मिक्स चटनी और
पांचवा – अयुक्तियुक्त बोल।

ऐसा नहीं समझो – हंसी-मज़ाक अच्छी चीज़ है। हंसी-मज़ाक अच्छा वह है जिसमें रूहानियत हो और जिससे हंसी-मजाक करते हो उस आत्मा को फायदा हुआ।

रमणीकता का गुण अच्छा माना जाता है लेकिन व्यक्ति, समय, संगठन, स्थान, वायुमण्डल के प्रमाण रमणीकता अच्छी लगती है। अगर इन सब बातों में से एक बात भी ठीक नहीं तो रमणीकता भी व्यर्थ की लाइन में गिनी जायेगी और सर्टीफिकेट क्या मिलेगा कि हंसाते बहुत अच्छा है लेकिन बोलते बहुत है। तो मिक्स चटनी हो गई ना।

बोल सदैव ऐसे हों जो सुनने वाले चात्रक हों कि यह कुछ बोले और हम सुनें – इसको कहा जाता है अनमोल महावाक्य। महावाक्य ज्यादा नहीं होते। जब चाहे तब बोलता रहे – इसको महावाक्य नहीं कहेंगे।

ऐसा व्यक्ति सभी बातें इंट्रेस्ट से सुनाता हैं ,खुद भी रुचि से बोलेगा, दूसरे की भी रुचि पैदा कर लेगा।
सार कुछ भी नहीं लेकिन साज़ बहुत रमणीक होता है। इसको कहते हैं कथा।

व्यर्थ बोलने वाले को सुनने और सुनाने के साथी बहुत जल्दी बनते हैं। लेकिन ऐसी आत्मा एकान्तप्रिय हो नहीं सकती । वह साथी बनाने में बहुत होशियार होगा।

तीव्र पुरूषार्थी अर्थात् फर्स्ट डिवीजन वाले और पुरूषार्थी अर्थात् सेकण्ड डिवीजन में पास होने वाले।

चाहना तो सबकी फर्स्ट डिवीजन की है और सेकण्ड डिवीजन में आना कोई नहीं चाहता। लेकिन परुषार्थ सेकेंड डिवीजन की करते है अर्थात लक्ष्य और लक्षण, दोनों में अन्तर पड़ जाता है।

इसके पीछे विशेष दो कारण है।

एक – संकल्प शक्ति है ,जो सबसे श्रेष्ठ शक्ति है उसको यथार्थ रीति स्वयं प्रति वा सेवा प्रति समय प्रमाण कार्य में लगाने की यथार्थ रीति नहीं है। दूसरा कारण – वाणी की शक्ति को यथार्थ रीति, समर्थ रीति से कार्य में लगाने की कमी। इन दोनों में कमी के कारण हम – यूज के बजाय लूज़ कर जाते है। शब्दों में अंतर थोड़ा है लेकिन परिणाम में बहुत अंतर पड़ जाता है।

अव्यक्त बाप दादा मुरली महावाक्य
14 जनवरी 1990

About admin

Check Also

बाइक रैली आयोजित कर पर्यावरण बचाओ का संदेश दिया।

देहरादून – 19 मई 2024- कावासाकी देहरादून एवं तमतारा कैफे की ओर से पर्यावरण बचाओ …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *