Thursday , November 21 2024

समलैंगिक शादी का अभी समय नहीं आया है : अजीत द्विवेदी

24,10,2023

 

समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग करने वाली 20 याचिकाओं पर लंबी सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया उसका एक स्पष्ट संकेत यह है कि तमाम प्रगतिशील सोच के बावजूद सर्वोच्च अदालत भी यह मानती है कि अभी भारत में समलैंगिक शादियों का समय नहीं आया है। इसके कानूनी पहलू अपनी जगह हैं लेकिन फैसला मूल रूप से इस आधार पर आया है कि भारत का समाज इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं है। यह माना गया है कि इससे परिवार का ढांचा बिगड़ेगा, जबकि परिवार ही समाज की बुनियादी है। संविधान पीठ के पांचों माननीय जजों की यह बात समझ में आती है क्योंकि देश के मान्य कानूनों के साथ स्पष्ट टकराव वाले मामलों को छोड़ कर सुप्रीम कोर्ट को भी अंतत: समाज की लोकप्रिय भावनाओं का ख्याल रखना होता है। तभी सर्वोच्च अदालत ने समलैंगिक शादी को कानूनी मान्यता देने का सवाल संसद के ऊपर छोड़ा है और सबको पता है कि देश की संसद निकट भविष्य में ऐसा कोई कानून बनाने नहीं जा रही है।
इसके बावजूद सुप्रीम कोर्ट का फैसला यथास्थिति को बदलने वाला है। यहां तक कि समलैंगिक जोड़ों के अधिकारों के मसले पर अल्पमत का फैसला भी एक क्रांतिकारी कदम है और उससे समलैंगिकों को समानता का अधिकार देने का रास्ता खुलता है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला कई मायने में थोड़ा जटिल है। चार जजों ने अलग अलग फैसला लिखा और यही कारण है इसके पढ़े जाने में भी बहुत समय लगा। इस फैसले में दो बातें बुनियादी रूप से सामने आती हैं। पहली बात तो यह कि पांच जजों की बेंच ने एक राय से कहा कि समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता नहीं दी जा सकती है और यह मामला संसद के ऊपर छोड़ा। दूसरा फैसला तीन-दो के बहुमत से आया। यह बहुत दिलचस्प संयोग है कि चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ अल्पमत में थे। आमतौर पर चीफ जस्टिस की राय बहुमत की राय होती है। देश में कोई डेढ़ हजार मामले संविधान पीठ ने सुने होंगे और 10-12 को छोड़ कर सबमें चीफ जस्टिस की राय के साथ बहुमत की राय रही है। लेकिन इस मामले में चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस संजय किशन कौल ने समलैंगिक जोड़ों को बच्चा गोद लेने का अधिकार देने का समर्थन किया, जबकि बाकी तीन जजों ने इसका विरोध किया। इसका मतलब है कि बहुमत से यह फैसला हुआ कि समलैंगिक जोड़े बच्चा गोद नहीं ले सकते हैं।
इन दोनों फैसलों के गुण-दोष पर बहस हो सकती है। समलैंगिक शादी को कानूनी मान्यता देने और नहीं देने दोनों के पक्ष में बहुत मजबूत तर्क हैं, जो अदालत के सामने दिए गए। इसके विरोध का मूल तर्क यह है कि विवाह जैविक रूप से भिन्न दो लिंग के लोगों का यूनियन है। यानी पुरुष और स्त्री के बीच ही विवाह हो सकता है। दूसरा तर्क यह है कि अगर समान लिंग के लोगों को विवाह की अनुमति दी गई तो उनके यूनियन से परिवार नहीं बनेगा और फिर समाज की व्यवस्था प्रभावित होगी। हालांकि दो भिन्न लिंग के लोगों के बीच विवाह से भी कई बार परिवार नहीं बनता है, बच्चे नहीं होते हैं फिर भी समाज की व्यवस्था प्रभावित नहीं होती है। यह इस तर्क का विरोधाभास है। इसका सीधा मतलब यह होता है कि विवाह सिर्फ संतानोत्पत्ति के लिए होती है, जो कि समलैंगिक शादी में संभव नहीं है। हालांकि बच्चा गोद लेने की अनुमति देकर इस विसंगति को दूर किया जा सकता है। तभी चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस कौल ने इसका समर्थन किया कि समलैंगिक जोड़ों को बच्चा गोद लेने की अनुमति दी जाए। लेकिन बेंच के बाकी तीन जजों की राय इससे अलग थी। सोचें, यह कैसा विरोधाभास है कि अकेला आदमी या औरत बच्चा गोद ले सकते हैं या सरोगेसी से बच्चा पैदा करके उसे पाल सकते हैं- करण जौहर और तुषार कपूर इसकी मिसाल है, लेकिन समलैंगिक जोड़ों को बच्चा गोद लेने की इजाजत नहीं होगी।
बहरहाल, इस फैसले में समूचे एलजीबीटीक्यू समुदाय के लिए सिल्वर लाइन यह है कि जजों ने स्पेशल मैरिज एक्ट को संवैधानिक माना है और इस समुदाय के अधिकारों के लिए एक उच्च स्तरीय कमेटी बना कर विचार करने को कहा है। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से ही यह सुझाव दिया गया था कि एक कमेटी उनके अधिकारों पर विचार कर सकती है। ध्यान रहे भारत में समलैंगिकता को अपराध के दायरे से पहले ही बाहर कर दिया गया है। वह एलजीबीटीक्यू समुदाय की बड़ी जीत थी। अब अगर कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में कमेटी बनती है और वह अधिकारों को लेकर विचार करती है तो यह भी समलैंगिकों की विवाह में समानता की मांग की तरफ एक कदम बढऩे की तरह होगा। सुप्रीम कोर्ट ने विवाह के रूप में उनके रिश्ते की कानूनी मान्यता के बिना, समलैंगिक यूनियन में व्यक्तियों के अधिकारों की जांच करने के लिए एक समिति बनाने के निर्देश दिए हैं। अदालत ने कहा है कि समलैंगिक समुदाय को दिए जा सकने वाले अधिकारों, लाभों की पहचान करने के लिए कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता वाला पैनल बने। यह भी कहा गया है कि कुछ कानूनी अधिकार, सामाजिक कल्याण उपाय, सामाजिक सुरक्षा लाभ उनका दिया जाना चाहिए। अदालत चाहती है कि यह समिति राशन कार्ड में समलैंगिक जोड़ों को परिवार के रूप में शामिल करने, समलैंगिक जोड़ों को संयुक्त बैंक खाते के लिए नामांकन करने में सक्षम बनाने, पेंशन, ग्रेच्युटी आदि से मिलने वाले अधिकारों पर विचार करे। ऐसा होता है तो निश्चित रूप से उनके अधिकारों में बढ़ोतरी होगी।
जहां तक परिवार, समाज, संस्कृति और परंपरा की बात है, जिसकी दुहाई सुप्रीम कोर्ट में दी गई है या जिसके आधार पर कट्टर हिंदुवादी व कट्टर मुस्लिम संगठनों ने फैसले का स्वागत किया है उसका कोई खास मतलब नहीं है। इस तरह के संगठन हर किस्म के सामाजिक बदलाव का विरोध करते हैं। इस तर्क का भी कोई मतलब नहीं है कि समलैंगिक जोड़ों की शादी का इतिहास नहीं है या इसकी परंपरा नहीं है। ऐसा नहीं है कि समाज में कभी ऐसी चीजें नहीं रही हैं। रूथ वनिता और सलीम किदवई ने ‘सेम सेक्स लव इन इंडिया’ नाम से एक किताब संपादित की है, जिसमें उन्होंने प्राचीन भारत में भी ऐसे संबंध होने का जिक्र किया है। भारत में गंधर्व विवाह से लेकर देव और ऋषि विवाह तक की परंपरा रही है। इच्छा मात्र से गर्भ धारण करने की कहानियां भारत के धर्मशास्त्रों में मिलती है। बिना पुरुष के संसर्ग के बच्चा पैदा करने की भी अनेक धार्मिक कहानियां हैं। आधुनिक काल तक भारत में विधवा विवाह नहीं होते थे, अंतरजातीय विवाह की मान्यता नहीं थी, अंतरधार्मिक विवाह एलियन की तरह थे। लिव इन रिलेशनशिप के बारे में भी कभी नहीं सोचा गया था। लेकिन जब दुनिया बदलने लगी तो भारत का समाज भी बदला। जिस दिन से तलाक की कानूनी व्यवस्था को स्वीकार किया गया उसी दिन शादी भी एक कानूनी व्यवस्था बन गई। अब हर जगह मैरिज रजिस्ट्रेशन की जरूरत है। पासपोर्ट, वीजा आदि में इसका खास ध्यान दिया जा रहा है। दुनिया के दो दर्जन से ज्यादा देशों ने अपने यहां समलैंगिक विवाह को मान्यता दे दी है और सवा सौ से ज्यादा देशों में समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया गया है। भारत में भी इस दिशा में काम चल रहा है। यह सही है कि एलजीबीटीक्यू समुदाय के लिए अदालत का फैसला निराशाजनक है लेकिन इसमें वे उम्मीद की किरण भी देख सकते हैं।

About admin

Check Also

जिज्ञासा यूनिवर्सिटी में बहुविश्यक शोध को बढ़ावा देते सम्मेलन का समापन

शोध को प्रभावी बनाने हेतु बहुविषयक अनुसंधान को बढ़ावा देने के उद्देश्य से जिज्ञासा विश्वविद्यालय …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *