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विश्व मानवाधिकार दिवस पर हुआ लैंगिक समानता, प्रकृति और पुरूष तथा पर्यावरण और भारतीय संस्कृति पर ‘संवाद’ का आयोजन

ऋषिकेश, Hamarichoupal,10,12,2022

परमार्थ निकेतन में विश्व मानवाधिकार दिवस के अवसर पर पूज्य संतों, धार्मिक विद्वानों और विभिन्न विश्वविद्यालयों के प्रोफेसर्स के सान्निध्य में लैंगिक समानता, प्रकृति और पुरूष तथा पर्यावरण और भारतीय संस्कृति पर ‘संवाद’ का आयोजन किया गया। विभिन्न धर्मों के धर्मगुरूओं ने लैंगिक समानता, लिंग आधारित हिंसा, बाल विवाह और पर्यावरण संरक्षण पर अपने-अपने धर्मों और धर्मशास्त्रों में उल्लेखित दिव्य संदेशों के विषय में अवगत कराया।
परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी, जीवा की अन्तर्राष्ट्रीय महासचिव डा साध्वी भगवती सरस्वती जी, भारतीय सर्व धर्म संसद के राष्ट्रीय संयोजक गोस्वामी सुशील जी महाराज, अध्यक्ष, दिल्ली गुरुद्वारा बंगला साहेब सरदार परमजीत चंडोक जी, डायरेक्टर ब्रह्माकुमारीज दिल्ली, राजयोगिनी बीके सपना दीदी जी, सचिव और विभिन्न धर्मो के धर्मगुरूओं ने वेद, गीता, महाभारत, रामायण, गुरूग्रंथ साहब आदि शास्त्रों में उल्लेखित दिव्य मंत्रों और संदेशों को अपने संवाद में शामिल किया।

ज्ञात हो कि लैंगिक आधार पर हो रही असमानता और हिंसा से मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है इससे न केवल पीड़ित को शारीरिक, यौन, मनोवैज्ञानिक और आर्थिक नुकसान होता है बल्कि लैंगिक समानता के अभाव में समृद्ध और गरिमापूर्ण समाज का निर्माण भी नहीं किया जा सकता।
हमारा मानना है कि दुनिया के लगभग सभी धर्मों और धार्मिक परंपराओं के मूल में सद्भाव, समानता, करुणा, न्याय और सभी की गरिमा को बनाए रखने का संदेश समाहित है। दुनिया की 84 प्रतिशत आबादी धर्म पर विश्वास करती इसलिये धार्मिक आस्था के आधार पर जनसमुदाय के व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन सहजता से किया जा सकता है तथा समाज के भीतर व्याप्त कठोर लिंग भूमिकाओं और मानदंडों को समाप्त कर समता, समानता, सद्भावपूर्ण और अहिंसा से युक्त समाज का निर्माण किया जा सके इसलिये परमार्थ निकेतन में आज डायलॉग का आयोजन किया गया।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि समृद्ध समाज के लिये लैंगिक असमानता एक खाई के समान है जिसे पाटना जरूरी है। समाज से लैंगिक असमानता की इस खाई को दूर करने के लिये धर्म और आस्था की महत्वपूर्ण और शक्तिशाली भूमिका है। महिला और पुरुष दोनों ही समाज के मूल आधार हैं फिर भी कई स्थानों पर घर और समाज दोनों ही स्तरों पर महिलायें शोषण, अपमान और भेदभाव से पीड़ित होती हैं।
महिलाएँ दुनिया की कुल आबादी का लगभग आधा हिस्सा हैं, और इसी कारण से लैंगिक विभेद के व्यापक और दूरगामी असर समाज के हर स्तर पर दिखायी देते हैं इसलिये जरूरी है कि हम सभी धर्मों और धार्मिक संगठनों को एक मंच पर लाकर समाज में व्याप्त सामाजिक कुरीतियों को समाप्त किया जा सके।

इस अवसर पर अखिल धर्म संसद भारत, गीता कठपालिया आहूजा जी, अध्यक्ष-द्रौपदी ड्रीम ट्रस्ट, लेखक, प्रो. लोक वक्ता श्रीमती नीरा मिश्रा, रेस्क्यू फाउंडेशन की संस्थापक त्रिवेणी आचार्य, प्रोफेसर पंजाब यूनिवर्सिटी ऑफ जेंडर स्टडीज डॉ कंचन चंदन, लोक नृत्य के प्रोफेसर, सामाजिक जागरूकता के लिए नृत्य नाटकों के निर्माता प्रोफेसर प्रोद्युत दत्ता, जायसवाल, पटकथा लेखक श्री महेश प्रसाद, सचिव, गुरुद्वारा बंगला साहेब जसप्रीत कौर, ग्लोबल इंटरफेथ वॉश एलायंस की निदेशक गंगा नंदिनी और अनेक विद्वान उपस्थित थे।

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