देहरादून (हमारी चौपाल) हरिपुर कला
आज के समय में जब भी हम पीछे मुड़कर देखते हैं, तो वो पुराने दिन वाकई सोने जैसे लगते हैं, जब मोबाइल और इंटरनेट का शोर नहीं था, तो रिश्तों में एक अलग ही मिठास थी,
कल्पना कीजिए उस वक्त की ,रात के खाने के बाद, सारा परिवार एक साथ बैठता था, मोबाइल की नीली रोशनी में गुम होने की बजाय, हर कोई एक-दूसरे से बातें करता, दिनभर का हालचाल पूछता ,आपकी दादी माँ की कहानियाँ, जो हर रात खाने के बाद सुनाई जाती थीं, वो सिर्फ कहानियाँ नहीं थीं, बल्कि परिवार को जोड़ने वाली डोर थीं ,उनमें प्रेम था, अपनापन था और एक ऐसा सुकून था, जो आज ढूंढने से भी नहीं मिलता, उन लम्हों को याद करके सचमुच दिल में एक टीस उठती है, और मन करता है कि काश वो दिन फिर से लौट आएं, लेकिन वो शायद मुनासिब नहीं ,
उस समय किसी तरह की भागदौड़ नहीं थी, लोग दिखावे की होड़ में नहीं थे, किसी को इस बात की चिंता नहीं रहती थी कि पड़ोसी के पास क्या है और मेरे पास क्या नहीं ,अमीरी और गरीबी का भेद शायद उतना गहरा नहीं था, या शायद लोग उसमें उलझते ही नहीं थे ,सबका ध्यान जीवन की सादगी और एक-दूसरे के साथ को महत्व देने पर था,
आज के समय में, बस दिखावे की दुनिया रह गई है, अगर कोई 4 लाख की गाड़ी घर ले आता है, तो पड़ोसी अगले ही पल 7 लाख की गाड़ी की प्लानिंग बना लेता है ,यह एक अंतहीन दौड़ बन गई है, जिसमें हर कोई खुद को दूसरों से बेहतर या यौन भी कह सकते हैं ऊंचा साबित करना चाहता है, इस होड़ में, आपसी प्रेम कहीं खो गया है, पार्टियाँ और समारोह दिखावे का अड्डा बन गए हैं, पति पत्नी या परिवार वाले फोटो खिंचवाते वक्त ऐसे दिखाते हैं जैसे उनके बीच बहुत गहरा प्रेम हो, लेकिन सच्चाई अक्सर इसके विपरीत होती है, घर पहुँचते ही, रिश्ते की कड़वाहट सामने आ जाती है,
यह सच है कि वो दिन अब वापस नहीं आ सकते, लेकिन उन यादों को सहेजना और उनसे सीख लेना हमारे हाथ में है, शायद हम आज भी उन पुराने दिनों की कुछ अच्छी बातों को अपने जीवन में उतार सकें और रिश्तों की अहमियत को फिर से समझ सकें,
क्या आपको लगता है कि आज भी हम अपने जीवन में उस सादगी और प्रेम को वापस ला सकते हैं ,