20.07.2021,Hamari Choupal
मॉनसून आने के महीने भर के अंदर बिजली गिरने से देश के आठ राज्यों में सौ से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। यह अभी तक किसी भी एक महीने में बिजली गिरने से मरने वालों की सबसे अधिक संख्या है। वैसे झारखंड, पश्चिम बंगाल या उत्तर प्रदेश के लिए यह कोई नई बात नहीं, लेकिन इस बार राजस्थान में एक ही पल में बीस लोगों की मौत ने इस त्रासदी के विस्तार की चेतावनी दे दी है। एक ही दिन में देश में 67 लोगों का बिजली गिरने से मारा जाना भी असामान्य घटना है।
वैसे आकाशीय बिजली वैश्विक आपदा है। जहां अमेरिका में हर साल बिजली गिरने से औसतन तीस और ब्रिटेन में मात्र तीन लोगों की मृत्यु होती है, वहीं भारत में यह औसतन दो हजार लोगों को लील लेती है। इसका मूल कारण है कि हमारे यहां आकाशीय बिजली के पूर्वानुमान और चेतावनी देने की व्यवस्था विकसित नहीं हो पाई है।
वैसे बहुत बड़े इलाके में एक साथ बिजली गिरने का असल कारण धरती का लगातार बदलता तापमान है। यह बात सभी के सामने है कि आषाढ़ में पहले कभी भारी बरसात नहीं होती थी, लेकिन अब ऐसा होने लगा है। बहुत कम समय में अचानक भारी बारिश हो जाना और फिर सावन-भादों का सूखा जाना- यही जलवायु परिवर्तन की त्रासदी है। बिजली गिरने की घटनाओं में बढ़ोतरी की वजह भी यही है।
मुसीबत यह है कि अधिक बिजली गिरने से जलवायु परिवर्तन को भी गति मिलती है। बिजली गिरने के दौरान निकलने वाली नाइट्रोजन ऑक्साइड एक घातक ग्रीनहाउस गैस है। कई महत्वपूर्ण शोध बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन ने बिजली गिरने के खतरे को बढ़ाया है। इस दिशा में और गहराई से काम करने के लिए ग्लोबल क्लाइमेट ऑब्जर्विंग सिस्टम के वैज्ञानिकों ने विश्व मौसम विज्ञान संगठन के साथ मिलकर एक विशेष शोध दल बनाया है। जलवायु परिवर्तन के अध्ययन से पता चलता है कि भविष्य अगर ज्यादा गर्म हुआ, तो गरजदार तूफान कम लेकिन तेज आंधियां ज्यादा चलेंगी, जिसके चलते धरती पर बिजली की मार 10 फीसदी तक बढ़ सकती है।
कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले के वैज्ञानिकों ने मई 2018 में वायुमंडल को प्रभावित करने वाले अवयव और बिजली गिरने के बीच संबंध पर एक शोध किया था, जिसके मुताबिक आकाशीय बिजली के लिए दो प्रमुख अवयवों की आवश्यकता होती है- पानी और बर्फ बनने से रोकने वाले घने बादल। वैज्ञानिकों ने 11 अलग-अलग जलवायु मॉडल पर प्रयोग किए और पाया कि भविष्य में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में गिरावट नहीं आएगी, जिसके चलते आकाशीय बिजली गिरने की घटनाएं बढ़ेंगी।
एक बात गौर करने की है कि हाल ही में जिन इलाकों में बिजली गिरी, उनमें बड़ा हिस्सा धान की खेती का है। जहां धान के लिए पानी जमा किया जाता है, वहां से मीथेन नाम की ग्रीन हाउस ज्यादा निकलती है। मौसम जितना गर्म होगा, जितनी ज्यादा ग्रीन हाउस गैस निकलेगी, बिजली उतनी ही अधिक ताकत से धरती पर गिरेगी। ऑनलाइन जर्नल ‘जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्सÓ के मई-2020 अंक में प्रकाशित एक अध्ययन में अल निनो, ला निना, हिंद महासागर डाय और दक्षिणी एन्यूलर मोड के जलवायु परिवर्तन पर प्रभाव और उससे दक्षिणी गोलार्ध में बढ़ते तापमान के चलते अधिक बिजली गिरने की आशंका जताई गई है।
वैसे तो मॉनसून में बिजली चमकना सामान्य बात है, लेकिन हर चमकने वाली बिजली गिर नहीं जाती। बिजली तीन तरह की होती है- बादल के भीतर कड़कने वाली, बादल से बादल में कड़कने वाली और बादल से जमीन पर गिरने वाली। बिजली उत्पन्न करने वाले बादल आमतौर पर 10-12 किमी की ऊंचाई पर होते हैं, जिनका आधार पृथ्वी की सतह से लगभग 1-2 किमी ऊपर होता है। शीर्ष पर तापमान -35 डिग्री सेल्सियस से -45 डिग्री सेल्सियस तक होता है। तकनीकी जटिलताओं से अलग सीधे शब्दों में कहा जाए तो धरती का तापमान जितना बढ़ेगा, बिजली भी उतनी ही बनेगी और गिरेगी।
फिलहाल ध्यान देने की बात यह है कि लोगों में जागरूकता फैलाकर इस समस्या को काबू में लाया जा सकता है। आसमानी बिजली का गिरना हम भले न रोक पाएं, लेकिन तडि़त चालक का अधिक से अधिक इस्तेमाल जैसे कुछ आसान उपायों से इसके नुकसान को कम जरूर कर सकते हैं।