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कमजोरी या अवगुण देखने का नेत्र बन्द रखें : मनोज श्रीवास्तव

08.07.2021,Hamari Choupal

प्रतिज्ञा करते समय बहुत उमंग-उत्साह और हिम्मत से संकल्प लेते हैं। कुछ समय तक संकल्प को साकार में लाने का और समस्यओं का सामना करने का प्रयास भी करते हैं, परन्तु चलते-चलते कुछ समय के बाद फूल अटेंशन के बजाय सिर्फ अटैंशन रह जाता है और अटैंशन के बीच-बीच अटेंशन, टेंशन का रूप ले लेता है।

विजय हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, यह संकल्प धीरे-धीरे अपना रूप परिवर्तित करता है और जन्मसिद्ध अधिकार के स्थान पर हमारी बोल बदलकर, शक्ति दो, अधिकार दो हो जाते हैं। है शब्द दो लेकिन मूल शब्द बदल जाता है। दाता के बजाय लेने वाले बन जाते हैं। इस मार्ग पर चलते रहते हैं। पुरूषार्थ की स्टेज कभी तीव्र, कभी हलचल वाली रहती है। इस रास्ते चलते रहते हैं और चलते-चलते रूक जाते हैं। रिजल्ट में देखते हैं कि रास्ते के नजारों में मंजिल की तरफ से किनारा कर लेते हैं।

हमारे खेल में सदैव लक्ष्य विजय का हो हम विजयी हैं और विजयी रहेंगे ऐसा संकल्प सदैव कर्म के प्रत्यक्ष दिखाई दे। इसके लिए भाषा को परिवर्तन करना और अपने स्वभाव संस्कार में भी परिवर्तन करना होगा। बीती सो बीती करके व्यर्थ खाता समाप्त करना होगा और समर्थ का खाता हर संकल्प में जमा करना होगा।

किसी व्यक्ति की कमजोरी या अवगुण देखने का नेत्र बन्द रखें, इसे न धारण करें और न ही वर्णन करें। सदैव अपने को विशेष समझकर संकल्प और कर्म करना होगा। सदैव हर एक की विशेषता को देखें और हर व्यक्ति में विशेष आत्मा की भावना रखें। सदैव एक बात का अटैंशन रखें। अपनी छोड़ी हुई अवगुण या कमजोरी फिर से न धारण करें।

अव्यक्त बाप दादा, मुरली महावाक्य 02 जनवरी, 1979

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