Hamarichoupal,18,12,2022
प्रतिज्ञा का अर्थ ही है कि जान चली जाए लेकिन प्रतिज्ञा न जाये। कुछ भी त्याग करना पड़े, कुछ भी सुनना पड़े लेकिन प्रतिज्ञा न जाये। ऐसे नहीं जब कोई समस्या नहीं तब तो प्रतिज्ञा ठीक है, अगर कोई समस्या आ गई तो समस्या शक्तिशाली हो जाए और प्रतिज्ञा उसके आगे कमजोर हो जाए। इसको प्रतिज्ञा नहीं कहा जाता।
वचन अर्थात् वचन। तो ऐसे प्रतिज्ञा मन से करें, कहने से नहीं। कहने से करने वाले उस समय तो शक्तिशाली संकल्प करते हैं। कहने से करने वाले में शक्ति तो रहती है लेकिन सर्व शक्तियां नहीं रहतीं।
अगर मन में यह संकल्प होता है कि कोशिश करेंगे; करना तो है ही; बनना तो है ही; ऐसे नहीं करेंगे तो क्या होगा; क्या करेंगे, इसलिए कर लो… इसको कहा जायेगा थोड़ी-थोड़ी मजबूरी। जो मन से करने वाला होगा वह यह नहीं सोचेगा कि करना ही पड़ेगा…। वह यह सोचगा कि कहा और हुआ ही पड़ा है। निश्चय और सफलता में निश्चित होगा।
यह है फर्स्ट नम्बर की प्रतिज्ञा। सेकेण्ड नम्बर की प्रतिज्ञा है बनना तो है, करना तो है ही, पता नहीं कब हो जाये। यह ‘तो’, ‘तो’… करना अर्थात् तोता हो गया ना। हर एक ने जीवन में कितनी बार प्रतिज्ञा की है, वह सारा फाइल है। फाइल बहुत बड़े हो गये हैं। अभी फाइल नहीं भरना है, फाइनल करना है।
चेक करे कि फाइल में कागज एड करेंगे कि फाइनल प्रतिज्ञा करेंगे?
प्रतिज्ञा कमजोर होने का एक ही कारण है। वह एक शब्द भिन्न-भिन्न रॉयल रूप में आता है और कमजोर करता है। वह एक ही शब्द है बाडी-कॉनसेस का ‘मैं’। यह ‘मैं’ शब्द ही धोखा देता है। ‘मैं’ यह समझता हूँ, ‘मैं’ ही यह कर सकता हूँ, ‘मैंने’ जो कहा वही ठीक है, ‘मैंने’ जो सोचा वही ठीक है। तो ‘भिन्न-भिन्न’ रॉयल रूप में यह मैं-पन प्रतिज्ञा को कमजोर करता है।
यह ‘मैं-पन’ कमजोर करता है। बहुत अच्छे रॉयल रूप हैं। अपनी लाइफ में देखो यही ‘मैं-पन’ संस्कार के रूप में, स्वभाव के रूप में, भाव के रूप में, भावना के रूप में, बोल के रूप में, सम्बन्ध-सम्पर्क के रूप में और बहुत मीठे रूप में आता है?
प्रतिज्ञा करनी है तो सम्पूर्ण प्रतिज्ञा करो। तो प्रतिज्ञा मन से करो और दृढ़ करो। बार-बार अपने आपको चेक करो कि प्रतिज्ञा पॉवरफुल है या परीक्षा पॉवरफुल है? क्योंकि कोई न कोई परीक्षा प्रतिज्ञा को कमजोर कर देती है।