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कांग्रेस किस बात से घबरा रही है

न्यूज़ एजेंसी,(RNS), Hamarichoupal,17,09,2022

अध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर कांग्रेस आलाकमान परेशान है। किसी बात की घबराहट है। तभी प्रदेश कमेटियों से कहा गया है कि वे अध्यक्ष मनोनीत करने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को अधिकृत करें। क्या सोनिया गांधी को लग रहा है कि अध्यक्ष का चुनाव कांग्रेस का विभाजन करा सकता है? कई नेता ऐसा मान रहे हैं। उनको लग रहा है कि कांग्रेस पार्टी में अभी तो नेता छोड़ कर जा रहे हैं लेकिन ऐसा भी हो सकता है कि पार्टी दो फाड़ हो जाए। चुनाव होने की स्थिति में इसकी ज्यादा संभावना मानी जा रही है। कांग्रेस के एक जानकार नेता का कहना है कि सीताराम केसरी का चुनाव अलग बात थी। उस समय सोनिया गांधी का नेतृत्व किसी ने देखा नहीं था और तब नेहरू-गांधी परिवार के करिश्मे पर पार्टी नेताओं को यकीन था। तभी उस समय सोनिया समर्थित केसरी ने भारी अंतर से शरद पवार और राजेश पायलट को हरा दिया था। लेकिन अब अगर वैसा चुनाव होता है तो मुश्किल हो सकती है।
असली चिंता या घबराहट इस बात को लेकर ही अगर राहुल गांधी चुनाव नहीं लड़ते हैं और उनकी जगह किसी और को उतारा जाता है तो उसे कौन कौन लोग चुनौती दे सकते हैं? और उनकी चुनौती कितनी गंभीर होगी? यह चिंता इस वजह से है कि कांग्रेस के नाराज नेताओं का समूह जी-23 भले बहुत मजबूत नहीं दिख रहा हो पर उनकी साझा ताकत बड़ी है। यह भी हकीकत है कि उस समूह के नेताओं की नाराजगी खत्म नहीं हुई है। गुलाम नबी आजाद पार्टी छोड़ गए हैं तो कपिल सिब्बल सपा की मदद से राज्यसभा में जाकर कांग्रेस से दूर हो गए हैं। आनंद शर्मा भी पार्टी से दूर ही हैं और मनीष तिवारी, शशि थरूर, भूपेंदर सिंह हुड्डा आदि नेता किसी न किसी तरह से नाराजगी दिखाते रहते हैं।
इस समूह के एक नेता मुकुल वासनिक को पार्टी ने अभी राज्यसभा में भेजा है लेकिन पार्टी के साथ उनका भी सब कुछ ठीक नहीं है। तभी उनको मध्य प्रदेश के प्रभारी पद से हटाया गया है। इसलिए कांग्रेस आलाकमान को चिंता है कि अगर जी-23 की ओर से कोई साझा उम्मीदवार सामने आता है तो पंजाब में तिवारी, कश्मीर में आजाद, हरियाणा में हुड्डा, केरल में थरूर, हिमाचल में आनंद शर्मा, महाराष्ट्र में मुकुल वासनिक जैसे नेता उसके लिए वोट जुटा सकते हैं। कई राज्यों में पार्टी के नेता विधायक आदि भाजपा के संपर्क में हैं। वे सब दूसरे उम्मीदवार का समर्थन कर सकते हैं। अगर खुदा न खास्ते अधिकृत उम्मीदवार हार जाए तो पार्टी हाथ से निकल जाएगी और न भी हारे तब भी विभाजन की संभावना बढ़ जाएगी।

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