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उत्तर प्रदेश में परिवर्तन की दावेदारी

11,12,2021,Hamari Choupal

 

उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल में गठबंधन के बाद मंगलवार को मेरठ में हुई परिवर्तन रैली में जुटी भीड़ को लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के राजनीतिक मिजाज में बदलाव को लेकर कयास लगाये जा रहे हैं। किसान आंदोलन के बाद उर्वरा हुई राजनीतिक जमीन से उत्साहित चौ. चरण सिंह व चौ. अजीत सिंह की विरासत संभाल रहे राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष चौधरी जयंत, समाजवादी पार्टी से गठबंधन के बाद भाजपा को चुनौती देने के मूड में हैं। ‘मेरठ चलो, यूपी बदलो’ के उद्घोष के साथ कार्यकर्ताओं को मेरठ की दबथुआ रैली में पहुंचने के जयंत के आह्वान को सकारात्मक प्रतिसाद भी मिला। इस रैली को परिवर्तन रैली नाम दिया गया था और एकता दिखाने को अखिलेश यादव व जयंत एक ही हेलिकॉप्टर से रैली में पहुंचे। पिछले विधानसभा व लोकसभा चुनावों में इस जाट बहुल इलाके से भाजपा को अच्छा प्रतिसाद मिला था। यहां तक चौ. अजीत सिंह व जयंत अपना लोकसभा चुनाव तक हार गये थे। लेकिन अब किसान आंदोलन के बाद फिज़़ा बदली हुई नजर आ रही है। लगता है अब भाजपा ने भी मान लिया कि उसका मुकाबला सपा व आरएलडी के गठबंधन से ही है। यही वजह है कि मंगलवार को मुख्यमंत्री के चुनाव क्षेत्र गोरखपुर में कई विकास योजनाओं के समर्पण के बीच प्रधानमंत्री ने सपा मुखिया पर अपरोक्ष हमला बोला और कहा कि लाल टोपी वालों से सावधान। ये लाल बत्ती के लिये आ रहे हैं। सपा द्वारा आतंकवादियों पर कृपा करने के भी आरोप लगाये। और कहा की लाल टोपी यूपी के रेड अलर्ट यानी खतरे की घंटी है। प्रधानमंत्री के इस बयान के एक मायने भाजपा कार्यकर्ताओं को एकजुट करना भी कहा जा रहा है। बहरहाल, सपा व आरएलडी के बीच सीटों के बंटवारे व अन्य वजह से असहमति के आरोपों को नकारते हुए सपा-आरएलडी की मंगलवार रैली के जरिये यह बताने की कोशिश हुई कि गठबंधन को जमीन पर उतारने की कवायद शुरू हो चुकी है।

दरअसल, तीन कृषि कानूनों को लेकर पश्चिमी उ.प्र. में जाट बहुल इलाके में जो असंतोष व्याप्त था उसे सपा-आरएलडी वोटों में बदलने की कोशिश में है। यह कहना कठिन है कि कृषि कानूनों की वापसी तथा बाकी मुद्दों का समाधान के बाद भाजपा को क्या हासिल होता है। वहीं दूसरी ओर रालोद चौ. चरण सिंह के जनाधार जाट-मुस्लिम एकता को फिर से स्थापित करने के लिये भाईचारा एकता सम्मेलन इलाके में आयोजित करता रहा है। दरअसल, मुजफ्फरनगर दंगों के बाद इलाके में दोनों समुदायों में जो बिखराव आया, उसे जोडऩे की कोशिश हुई है। दरअसल, इलाके में जाट व मुस्लिम आर्थिक रूप से भी आपस में जुड़े हैं। इसी मकसद से आरएलडी ने करीब साठ जनपदों में ऐसे सम्मेलन आयोजित किये। दरअसल, राज्य की सत्ता में निर्णायक भूमिका निभाने वाले पश्चिमी उ.प्र. में किसान आंदोलन से उपजे हालात आरएलडी के लिये प्राणवायु बने हैं। जाट समुदाय भी चौ. अजीत सिंह के बाद खुद को राष्ट्रीय राजनीति में असुरक्षित महसूस करता है। वह चाहता है कि चौ. चरण सिंह की विरासत को आगे बढ़ाया जाये। निस्संदेह, कोरोना संक्रमण से चौ. अजीत सिंह की मृत्यु की सहानुभूति भी जयंत सिंह को मिलेगी। दरअसल, पश्चिमी उ.प्र. में 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 51 सीटें जीतीं थी, जिसमें तेरह जाट विधायक भी शामिल थे। ऐसे में पश्चिमी उ.प्र. में जाट व मुस्लिम वोट बैंक में से बड़ा हिस्सा यदि सपा-रालोद गठबंधन को मिलता है तो स्थिति बदल भी सकती है, जिसके बूते अखिलेश सिंह व जयंत ‘यूपी बदलो’ का नारा दे रहे हैं। लेकिन एक बात तो तय है कि भाजपा के लिये पश्चिम उत्तर प्रदेश में वर्ष 2014, 2017 तथा 2019 जैसी कामयाबी को दोहराना मुश्किल होगा। हालांकि इस इलाके में भाजपा व संघ का मजबूत संगठन है और चुनाव आते-आते स्थितियों में और बदलाव होगा। भाजपा को लेकर जाट मतदाताओं का मिजाज इस बात पर निर्भर करेगा कि तीन कृषि सुधार कानूनों की वापसी के बाद एमएसपी, मुकदमे वापस लेने व मृत किसानों के लिये मुआवजे की मांग पर कैसा समझौता हो पाता है।

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