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बाज आएं पत्थरबाज

06.08.2021,Hamari चौपाल

 

ऐसे वक्त में जब जम्मू-कश्मीर को राष्ट्र की मुख्यधारा से अलग-थलग रखने वाले अनुच्छेद 370 को हटाये दो साल होने को हैं, प्रशासन ने घाटी के युवाओं को अराजक कृत्यों में शामिल होने से रोकने के लिये सख्त कदम उठाये हैं। पाक के तमाम अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत के इस कदम के खिलाफ रुदन और पाकपरस्त कश्मीरियों के उसके सुर में सुर मिलाने का उपक्रम कश्मीर की फिजा को खराब नहीं कर पाया। पहले केंद्र सरकार की सख्ती और बाद में कोरोना संक्रमण का दंश और उसे रोकने के लिये लगी पाबंदियों ने भारत विरोधी मुहिम को सिरे न चढऩे दिया। वहीं सुरक्षा बलों ने जीरो टॉलरेंस की नीति पर चलते हुए बड़े आतंकवादियों का सफाया किया। लेकिन अब जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने आतंकवादियों के जाल में फंसे स्थानीय युवाओं को सेना व सुरक्षाबलों पर पत्थरबाजी करने से बाज आने को लेकर चेताया है। प्रशासन ने फैसला किया है कि पत्थरबाजी करते पकड़े गये युवा न तो अब सरकारी नौकरी के लिये आवेदन कर सकेंगे और न ही उन्हें पासपोर्ट हासिल करने की अनुमति मिल पायेगी। उसके लिये सीआईडी की संस्तुति जरूरी होगी। केंद्रशासित प्रशासन के इस निर्णय का मकसद जहां दीर्घकाल में युवाओं को आतंकवादियों के प्रलोभन व बहकावे में आने से रोकना है, वहीं दूसरी ओर अनुच्छेद-370 को हटाने की वार्षिकी नजदीक होने के चलते किसी संभावित अराजक कोशिशों पर रोक लगाना भी है। इसमें दो राय नहीं कि मोदी सरकार के साहसिक फैसले के बाद कश्मीरी लोगों में ऊहापोह की स्थिति थी और सीमा पार तथा भीतर के पाक समर्थकों द्वारा युवाओं को बरगलाया जा रहा था कि उनका भविष्य अंधकारमय है। इसी दुविधा में कुछ भ्रमित युवा आतंकवादियों के प्रलोभन या भावनाओं में बहकर सेना व पुलिस पर पत्थर फेंकने लगे थे। ये काम उन्हें मामूली रकम देकर भी कराया जा रहा था। साथ ही अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में इन फोटुओं के जरिये दमन की तस्वीर उकेरने की साजिश की जा रही थी।

निस्संदेह, हाल के दिनों में कश्मीर घाटी में आतंकवादी घटनाओं के ग्राफ में तेजी से गिरावट आई है। एक ओर जहां प्रशासन की सख्ती है, वहीं पाक से लगी सीमा पर चौकसी से घुसपैठ पर काफी अंकुश लगा है। जिसके चलते खिसियाया पाक अब ड्रोन की मदद से अपने नापाक मंसूबों को अंजाम दे रहा है। बहरहाल, इसके बावजूद कश्मीर प्रशासन की कोशिश होनी चाहिए कि आतंकवाद की पृष्ठभूमि से किसी भी तरह के जुड़ाव रखने वाले युवाओं को देश की मुख्यधारा में शामिल करने के प्रयास हों। प्रशासन के स्तर पर सख्ती तो ठीक है, साथ ही लोगों का विश्वास हासिल करने का भी प्रयास करना चाहिए। नयी पीढ़ी के युवाओं को आतंकवादी सोच के लोगों के चंगुल में फंसाने से बचाने के लिये दीर्घकालीन रणनीति पर विचार किया जाये। बहुत संभव है कि देशव्यापी रोजगार संकट के चलते चंद रुपयों के प्रलोभन में कुछ युवा दहशतगर्दों के बहकावे में पत्थरबाजी के लिये तैयार हो जाते होंगे। यदि हर हाथ को काम मिल जाये तो शायद वे कच्चे प्रलोभन में फंसकर देश विरोधी कार्य नहीं करेंगे। ऐसे में घाटी की संवेदनशीलता को देखते हुए व्यापक स्तर पर व्यावहारिक रोजगारपरक कार्यक्रम चलाने की जरूरत है। धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर में पर्यटन उद्योग, ऊनी उत्पादों व कुटीर उद्योग-धंधों से जुड़े तमाम तरह के रोजगार के अवसर सृजित किये जा सकते हैं। जरूरी नहीं कि हरेक को सरकारी नौकरी मिल सके। लेकिन रोजगार सृजन को लेकर ठोस व व्यावहारिक रणनीति तैयार करनी चाहिए। साथ ही हालातों के चलते कुछ युवा भटके हैं तो उन्हें राष्ट्र की मुख्यधारा में लाने के लिये उदार रवैया भी अपनाया जा सकता है ताकि वे फिर से राष्ट्र विरोधियों के चंगुल में न फंसें। प्रशासन की हालिया पहल का सख्त संदेश युवाओं में निश्चित रूप से जायेगा। इससे पहले जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने कई ऐसे सरकारी कर्मचारियों को बर्खास्त किया, जो देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त थे। प्रशासन की सख्ती भी जरूरी है लेकिन दीर्घकालिक लक्ष्यों को पाने के लिये नागरिकों को विश्वास में लेने के लिये उदारता भी जरूरी है।

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