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नम्रता की ड्रेस, कवच बनकर सहयोग की प्राप्ति करता है : मनोज श्रीवास्तव

04,08,2021,Hamari Choupal

 

जितनी जो वस्तु पावरफुल होती है उतनी ही अति सूक्ष्म होती है। छोटी चीज तो होती है किन्तु कार्य बडा करती है। होना चाहिए यह एक साधारण संकल्प है। होना चाहिए, संकल्प मे मार्ग में दीवार खड़ी होती है और रूकावट डालती है। क्योकि एक तरफ संकल्प उठता है कि होना चाहिए तो दूसरी तरफ यह भी संकल्प उठता है कि पता नही यह होगा अथवा नही होगा। यह तो अन्त समय हो ही जायेगा। अभी तो ऐसा ही चलेगा। ऐसे व्यर्थ संकल्पों के ईटों की दीवार खड़ी हो जाती है, जो तीव्र पुरूषार्थ की गति को रोक लेते है। इसको पार करने के लिए एक दृढ संकल्प का हाई जम्प लगाना होगा। मै करके दिखाऊॅगा ऐसा दृढ संकल्प होना चाहिए।

 

हम दूसरों को भाषण देते है कि अपने को बदलों तो दुनिया बदल जायेगी लेकिन यह बात स्वयं पर भी लागू होती है। दूसरे की गलती को देखकर स्वयं गलती न करें। दूसरे की गलती देखने में आती है लेकिन मै गलती कर रहा हूॅ वह दिखाई नही पडती है। समझे कि एक गलत बोल रहा है लेकिन उसके संग के रंग में हम खूद भी गलत बोलने लगते है।

 

अगर कोई गलती करता है तो हम राईट में रहें उसके संग के प्रभाव में ना आ जाये। सिर्फ एक जिम्मेदारी उठना होगा कि मै राईट मार्ग पर रहूॅगा। रॉग को देख कर रॉग नही करें। अगर दूसरा व्यक्ति रॉग करता है तो उसे श्रेष्ठ भावना का सहयोग दें। किसी की गलती को नोट न करें। लेकिन उससे सहायोग का नोट से अर्थात सहयोग से भरपूर करके शाक्तिवान बना दें। इसने यह किया, यह ऐसा ही करता है, यह देखे नही और सूने नही। अन्यथा हमारे भीतर लापरवाही के संस्कार पक्के हो जायेंगे। यह दूसरो को देखंेगे और सूनेंगे तो स्वंय लापरवाह हो जायेगे।

 

समय के अनुसार व्यर्थ के नाम निशान को खत्म कर दें अर्थात न व्यर्थ बोल हो, ना व्यर्थ कर्म हो और ना व्यर्थ संग हो। व्यर्थ संग भी समय और शक्ति को खत्म कर देता है। कोई कितना भी आपके बीच कमी खोजने की कोशिश करें। इससे जरा भी विचलित ना हो। उसने कुछ भी रॉग किया फिर भी हम राईट रहें। अगर कोई टक्कर लेता है तो उसे अपने स्नेह का पानी देकर उसके अग्नि को शान्त करें। अगर हम कहते है उसने ऐसा क्यो किया, उसने ऐसा क्यो कहा तो इसका अर्थ है उस बात में हम तेल डाल देते है।

 

नम्रता की ड्रेस, कवच बनकर सहयोग की प्राप्ति करता है। जहॉ नम्रता होती वह सहयोग स्नेह जरूर होगा। सभी के संस्कार तो भिन्न भिन्न रहेंगे ही लेकिन उन सस्कारों का प्रभाव अपने ऊपर ना पडने दें। यदि दूसरा कोई माया का रूप बन कर सामने आये तो स्वंय साक्षी बन कर सेफ रहें। बोलने वाला बोले लेकिन सुनने वाला ना सुने यह संभव है। मर्यादा की लकीर के अन्दर रह कर किसी भी बात का फैसला करें।

अगर कोई रॉग कर रहा है तो उस पर रहम दृष्टि डालें। उससे डिस्कस न करें। यदि कोई पत्थर सामने आ जाता है तो हमारा काम है कि उसके साईड से निकल जाना ना कि पत्थर को उठा कर ले चलना। अगर देखना है तो विशेषता देखें, अगर छोडना है तो कमियॉ छोडे। सम्पर्क में आना पडता है तो केवल विशेषता दिखाई दे।

 

अव्यक्त बाप-दादा, महावाक्य मुरली, 23 नवम्बर 1979

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