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फैसलों का संदेश

12. 07.2021,Hamari Choupal

 

मोदी मंत्रिमंडल में हाल के भारी-भरकम बदलावों के बाद कैबिनेट की पहली बैठक में लिये गये फैसलों का साफ संदेश है कि कोविड संकट से निपटना और किसानों के गिले-शिकवे दूर करना सरकार की पहली प्राथमिकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई बैठक में कोरोना संकट की तीसरी लहर की आशंकाओं के बीच सरकार ने आपातकालीन पैकेज की घोषणा की है। दूसरी लहर की चुनौतियों से निपटने में सरकार की नीतियों को लेकर जिस तरह से तमाम सवाल उठे थे, उसके मद्देनजर सरकार सतर्क नजर आ रही है। महामारी से मुकाबले के लिये स्वास्थ्य का आधारभूत ढांचा मजबूत करने के मकसद से 23,123 करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा केंद्र सरकार ने की। हाल के मंत्रिमंडल विस्तार में जिन प्रमुख मंत्रियों की छुट्टी हुई है, उनमें स्वास्थ्य मंत्रालय संभाल रहे डॉ. हर्षवर्धन भी शामिल हैं। दूसरी लहर के दौरान जिस तरह देश में ऑक्सीजन संकट पैदा हुआ और अस्पतालों में उपचार नहीं मिला, उससे केंद्र सरकार की खासी किरकिरी हुई थी। जिस पर शीर्ष अदालत व उच्च न्यायालयों ने सख्त टिप्पणियां की थी और सरकारों को व्यवस्था में सुधार के लिये सख्त लहजे में संदेश दिया था। स्वास्थ्य मंत्री का बदलाव इस बात का संकेत भी है कि सरकार कोरोना संकट की दूसरी लहर के दौरान समय रहते मुकाबले में चूकी है। बहरहाल, नये स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्री मनसुख मंडाविया ने बताया कि यह पैकेज अगले नौ महीने यानी मार्च, 2022 तक लागू रहेगा। इसके तहत बीस हजार आईसीयू बैड तैयार करने का लक्ष्य है। उल्लेखनीय है कि यह आपातकालीन प्रक्रिया एवं स्वास्थ्य प्रणाली तैयारी पैकेज का दूसरा चरण है। इससे पहले केंद्र सरकार पूरे देश में कोविड केंद्रित अस्पताल एवं स्वास्थ्य केंद्र स्थापित करने के लिये 15000 करोड़ रुपये दे चुकी है। अब देखना होगा कि स्वास्थ्य मंत्रालय समय रहते महामारी की भयावहता रोकने के लिये कितना कारगर तंत्र विकसित करता है। जरूरत इस बात की भी है कि जमीनी हकीकत में भी बदलाव आये। साथ ही चिकित्सा सुविधाओं का लाभ शहर केंद्रित न होकर ग्रामीण भारत को पूरी तरह मिले।

बहरहाल मंत्रिमंडल में भारी फेरबदल के बाद केंद्र सरकार की पहली कैबिनेट बैठक का दूसरा साफ संदेश यह देने का प्रयास किया गया कि सरकार किसानों के मुद्दों को संबोधित करना अपनी प्राथमिकता समझती है। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि विवादास्पद कृषि सुधारों को लेकर पंजाब, हरियाणा व पश्चिम उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलनरत हैं। लंबे अर्से से यह आंदोलन चल रहा है और विवाद को सुलझाने की गंभीर पहल न होने के आरोप लगते रहे हैं। हालांकि, केंद्र सरकार कहती रही है कि वह खुले मन से बात करने को तैयार है। वह एक फोन कॉल की दूरी पर है। लेकिन इस दिशा में गंभीर व निर्णायक पहल होती नजर नहीं आई। बहरहाल, नये मंत्रिमंडल की पहली बैठक में लिये गये फैसलों से केंद्र सरकार ने यह स्पष्ट संदेश देने का प्रयास किया है कि वह कृषि उपज मंडी समितियों यानी एपीएमसी को खत्म नहीं होने देगी। यह भी कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसानों की उपज की खरीद जारी रहेगी। सरकार ने मंडियों के जरिये किसानों तक एक लाख करोड़ रुपये पहुंचाने का फैसला लिया। यानी कि कृषि मंडी समितियों की क्रय शक्ति बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है, ताकि किसानों की उपज खरीदने में परेशानी न आये। संदेश यह भी कि किसान के पास मंडियों व खुले बाजार में फसल बेचने का विकल्प उपलब्ध रहेगा। बकौल कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर आत्मनिर्भर भारत कार्यक्रम के तहत किसान आधारभूत संरचना कोष के लिये एक लाख करोड़ रुपये आवंटित किये गये हैं, जिसे कृषि उपज विपणन समिति किसानों की उपज खरीदने में खर्च कर सकेगी। निष्कर्ष स्पष्ट है कि किसानों की अधिक फसलों को खरीदने के लिये विपणन समितियों के पास अधिक तरलता उपलब्ध हो सकेगी। हालांकि, इन योजनाओं के क्रियान्वयन के बाद ही स्पष्ट होगा कि यह पहल कितनी कारगर है। यह भी कि सरकार की पहल पर आंदोलित किसान कैसी प्रतिक्रिया देते हैं। बहरहाल, सरकार ने किसानों के मुद्दे पर मनोवैज्ञानिक बढ़त तो ले ली है।

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