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समय का मूल्य रखना अर्थात अपना मूल्य रखना : मनोज श्रीवास्तव

02.07.2021,Hamari Choupal

समय को साधारण रीति से व्यतीत करना अर्थात रत्न की वैल्यू को पत्थर के समान यूज करना है। यदि समय को यर्थ गवाॅते है तो रत्न को पत्थर के समान यूज करते है। समय का मूल्य रखना अर्थात अपना मूल्य रखना है। समय की पहचान तो हमें है ही लेकिन इस पहचान स्वरूप पर चलना अर्थात अटेन्शन देना है। इसलिए चेक करें कि छोटी-छोटी बातों में समय नही चला जाय। अब धीरे चलने का समय समाप्त हो गया है। इसलिए हमें हाई जम्प लगाना है।

सदा अपने को ट्रस्टी बन कर चलना है। ट्रस्टी अर्थात सदा हल्का रहना है और गृहस्थी अर्थात सदा बोझ का अनुभव करना है। गृहस्थी होंगे तब उतरती कला में जायेंगे और ट्रस्टी होंगे तब चढती कला में जायेंगे। ट्रस्टी सदैव बेफिक्र बादशाह होते है, कैसी भी परिस्थिति हो लेकिन स्वयं को हल्का महसूस करते है। इस कारण ट्रस्टी किस वतावरण के प्रभाव में नही आते है। स्वंय को गृहस्थी समझने से क्या और क्यों का प्रश्न चलने लगता है लेकिन ट्रस्टी समझने से फुल स्टाप लग जाता है। फुल स्टाप अर्थात पावरफुल स्टेज का अनुभव करना है।

ट्रस्टी समझने से अगंद के समान अचल रहेंगे और माया के किसी भी प्रकार की हलचल में नही आयेंगे। माया का कोई वार हमारी स्थिति को हिला नही सकती है। हमारे हिलने का कारण है निश्चय का फाउन्डेशन मजबूत ना होना। अगर यह निश्चय हो कि हर बात में कल्याण है और यह समय कल्याण का है तब कितना भी बड़ा तूफान क्यो ना आये हम हिल नही सकते है। इसलिए अपने निश्चय के फाउन्डेशन को तीव्र पुरूषार्थ का पानी लेकर मजबूत रखें तभी अंगद के समान अचल रहेंगे। अभी हिलने का समय चला गया है यदि अभी हिलते रहेंगे तब लास्ट पेपर में भी हिल जायेंगे और सदैव के लिए फेल हो जायेंगे।

इसके लिए सदैव हिम्मत और उल्लास का एकरस बना रहे ऊपर-नीचे ना हो। हमें अपने सर्व प्राप्तियों का लिस्ट सामने रखना होगा जब प्राप्ति अटल और अचल होगी तो हिम्मत और उल्लास भी अचल रहेगा। अचल रहने के बजाय कभी मन चंचल हो जाता है और कभी हमारी स्थिति में चंचलता आ जाती है। इस संस्कार को समाप्त करना होगा। इसके लिए सदैव नया उमंग और उल्लास से नया प्लान बनाना होगा। ऐसे सर्विस के साधन बनने होंगे जिससे खर्चा कम हो लेकिन सफलता अधिक हो।

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