18.06.2021,Hamari Choupal
{प्रदीप कुमार राय}
पिछले दिनों कोरोना पॉजिटिव था। कई दिन तापग्रस्त रहने के बाद बिस्तर से उठा हूं। डॉक्टर की तरफ से हिदायत है कि अभी काफी दिन तक दलिया, खिचड़ी और फल खाऊं… और कुछ नहीं, लेकिन मुझे हर हाल में लड्डू खाने होंगे। अभी 55 किलो लड्डू का आर्डर दिया है। 50 किलो तो कालोनी में बांटूंगा और पांच किलो मैं खुद अकेला खाऊंगा। खुशी इतनी बड़ी है कि पांच किलो लड्डू तो कम से कम मुझे खाने ही चाहिए… भले ही कई दिन रुक-रुक के खा लूंगा। अपने प्रदेश के हित में लड्डू भोज कर रहा हूं, जनहित का मामला है। यह कोई मेरी जीभ के स्वाद का विषय नहीं।
मामला यूं है : हरियाणा के माथे से यह कलंक हट गया कि यहां स्कूल बोर्ड परीक्षा का परिणाम सौ प्रतिशत नहीं होता। 50 साल से कलंक का यह टीका गाढ़ा होता जा रहा था। अचानक दिन पलटे : कोरोना आयो और उसने कुछ खास तरीके से परीक्षा करायो… और हरि प्रदेश के मस्तक चढ़ा पांच दशक का गहरा कलंक टीका पूरी तरह धुला जायो।
हाल में घोषित प्रदेश बोर्ड की दसवीं कक्षा का परिणाम सौ प्रतिशत रहा है। कहने की जरूरत नहीं कि ढेरों लड्डू खाए बिना इस खुशी को मैं पचा नहीं पाऊंगा। फिर क्या मेडिकल साइंस मेरी इतनी भी मदद नहीं करेगी कि मुझे जनहित में इतने लड्डू पचाने लायक बना दे। इस अद्भुत, अद्वितीय रिजल्ट की जब मैं किसी से चर्चा करता हूं तो मेरी आंख से हर्ष की अश्रु धारा फूटकर मुंह-नाक सब भिगो देती है। खुशी के आंसू ऐसे क्यों न फूटें, जब प्रदेश के बहुत बच्चों ने 500 में से 500 ले अंक लिए हैंज्। 80-90 प्रतिशत अंक वालों की तो पूरी फौज है। घर में बैठे परीक्षा देने से यह प्रतिभा फूटी है। बस परीक्षा लेने की यह व्यवस्था स्थाई रूप से बनी रहनी चाहिए।
कई जानकार कह रहे हैं कि अगर यह बच्चे वैज्ञानिक, डॉक्टर या किसी अन्य विषय के शोधकर्ता बन गए, तो इतना अनोखा न कर दें कि दुनिया ही इधर से उधर हो जाए। लग तो मुझे भी कुछ ऐसा ही रहा है, ऑनलाइन की कोख से निकली यह प्रतिभाएं सब कुछ हिलाकर रख देंगी।
जिन होनहार बिरवानों के ऑनलाइन में खुरदरे से हुए चिकने पात, उन विद्या मणियों को भविष्य में बचाए रखने के लिए क्या यह व्यवस्था इस बात पर अमल नहीं कर सकती: परदे में रहने दोज्, परदा न उठाओ, परदा जो उठ गया तो भेद खुल जाएगा।